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________________ हिन्दू, बौद्ध या जैन नहीं कहा जा सकता है। विकार विकार है और स्वास्थ्य स्वास्थ्य है, वे हिन्दू, बौद्ध या जैन नहीं है। जिन्हें हम हिन्दू, जैन, बौद्ध अन्य किसी धर्म के नाम से पुकारते है, वह विकारों के उपचार की शैली विशेष है जैसे एलोपैथी, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपेथी आदि शारीरिक रोगों के उपचार की पद्धति है। समता धर्म / ममता अधर्म धर्म क्या है? इस प्रश्न का सबसे संक्षिप्त और सरल उत्तर यही है, कि वह सब धर्म है, जिससे मन की आकुलता समाप्त हो, चाह और चिन्ता मिटे तथा मन निर्मलता, शान्ति, समभाव और आनंद से भर जावे। इसीलिये महावीर ने धर्म को समता या समभाव के रूप में परिभाषित किया था। समता ही धर्म है और ममता अधर्म है। वीतराग, अनासक्त और वीततृष्ण होने में जो धार्मिक आदर्श की परिपूर्णता देखी गई, उसका कारण भी यही है कि यह आत्मा की निराकुलता या शान्ति की अवस्था है। आत्मा की इसी निराकुल दशा को हिन्दू और बौद्ध परम्परा में समाधि तथा जैन परम्परा में सामायिक या समता कहा जाता है। हमारे जीवन में धर्म है या नहीं है इसको जानने की एक मात्र कसौटी यही है कि सुख-दु:ख, मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि की अनुकूल परिस्थितियों में मन में संतोष न हो, चाह और चिन्ता बनी रहे और प्रतिकूल स्थितियों में मन दुःख और पीड़ा से भर जावे तो हमें समझ लेना चाहिये कि जीवन में अभी धर्म नहीं आया है। धर्म का सीधा सम्बन्ध हमारी जीवनदष्टि और जीवनशैली से है। बाह्य परिस्थितियों से हमारी चेतना जितनी अधिक अप्रभावित और अलिप्त रहेगी उतना ही जीवन में धर्म का प्रकटन होगा। क्योंकि मनुष्य के लिये यह सम्भव नहीं कि जीवन में उतार और चढ़ाव नहीं आवे। सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, मान-अपमान ये जीवन-चक्र के दुर्निवार पहलू हैं, कोई भी इनसे बच नहीं सकता। जीवन-यात्रा का रास्ता सीधा और सपाट नहीं है, उसमें उतार-चढ़ाव आते ही हैं। बाह्य परिस्थितियों पर आपका अधिकार नहीं है, आपके अधिकार में केवल एक ही बात है, वह यह कि आप इन अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों में अपने मन में, अपनी चेतना को निराकुल और अनुद्विग्न बनाये रखें, मानसिक समता और शांति को भंग नहीं होने देवें। यही धर्म है। श्री गोयनका जी के शब्दों में - सुख दुःख आते ही रहें, ज्यों आवे दिन रैन। तू क्यों खोवे बावला अपने मन की चैन।। यह मन की चैन नहीं खोना ही धर्म और धार्मिकता है। जो व्यक्ति जीवन की अनुकूलता और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी चित्त की शान्ति नहीं खोता है, वही धार्मिक है उसी के जीवन में धर्म का अवतरण हुआ है। कौन धार्मिक है और कौन अधार्मिक है, इसकी पहचान यही है कि किसका चित्त शांत है और किसका अशांत। 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001699
Book TitleDharma ka Marm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size8 MB
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