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________________ प्रस्तावना [89. मूर्तस्वरूप आपनार कर्म साहित्यसर्जनकार्यमा अग्रणी आ बे महात्माओ, ज्ञान उपरांत त्याग, तप वेयावचादि अनेकगुणोथी अलंकृत छे. जगत भौतिक वातावरणमां गळाबुड डूबी रह्यु छ ? त्यारे परमात्मा जिनेश्वरदेवना तत्वनिपिने सावधान समृद्ध करवानें काम करनारा आवा मुनिरत्नोथी जैन संघे आजे गौरव लेया जेवु छे. बन्न मां आद्य पू० आवार्यदेवश्रीना विद्वान शिष्यरत्न उग्रतपस्वी न्यायविशारद पू० पंन्यासजी श्री भानुविजयजी गणिवर्यना शिष्य शांतमति मुनिराज धर्मघोपविजयजी म. ना शिष्य छे, ज्यारे द्वितीय पू० पंन्यासजी म. ना शिष्य छे. मूलगाथा तथा टीका रचनार मुनिश्री गुणरत्नविजयजी पू० पंन्यासजी श्री भानुविजयजी गणिवर्यना शिष्य तपस्वी मुनिश्री जितेन्द्रविजयजी म.ना शिष्यरत्न(मंसारी लघुपन्यु) छे. व्याकरण, न्याय, कर्मसाहित्य अने प्रकरणादिविषयोनो सुन्दरबोध नानी वयमांज तेमणे प्राप्त कयों छे. सरलशेलीमा टीका रचवामां तथा कठिन पदार्थोंने पण अनेक वार 'इयमत्र भावना' वगेरे द्वारा तद्दन सहेलाईथी समजाय ते रीते रजू करवामां तेओ सारी रीते सफल थया छे. ग्रन्थमा द्रव्यानुयोग उपरांत गणितानुयोगनोविषय पण सारी रीते झलकी उठे छे. मुनिश्रीमां स्वाध्यायनी साथे त्याग, तप, वेगावच्च अने संयमशुद्धि वगेरेनो सुन्दर विकास देखाप छे. बाल अने युवान वयमा चारित्र आपी आत्माओनु आवु सुन्दर घडतर करवानो संम्पूर्ण यश पूज्य आचार्यदेवश्रीना फाळ जाय छ, अटलुज नहि, आग मुनिरत्नोने तैयार करी तेमनी पासे भावी पेढीओने उपयोगी थाय, तेवा महान साहित्यनु सर्जन करावी पूज्य आचार्यदेव. श्री मात्र वर्तमान जैन संघ पर नहीं पण भावी जैन संघ उपर पण महान उपकार कयों छे. जैनसंघ आवा निकारण अकारी पवित्रपुरुषने कदी नहीं विसरे. पोताना महान संयम, शासनप्रेम बहुश्रुतता वगेरे गुणोथी अने जैनशातनना निधानरूप कर्म साहित्य सर्जन करावधाथी तेओश्रीन पुण्यनाम जैन शापननी गौरव गाथामां सुवर्णाक्षरे अंकित थयेलु रहेशे... ___ ग्रन्थनो उपयोगिता-आ ग्रन्थनो स्वाध्याय कर्मविषयक ज्ञाननी सुदर रीते वृद्धि करावनार, द्रव्यानुयोग अने गणितानुगोगनो सुन्दरबोध करावनार, चित्तनी अकाग्रता वधारनार अने ते द्वारा अनंतानंत कर्मनी निर्जरामा अपूर्व सहायक छ. अटलुज नहि पण शुक्लध्यानगा कई वादने पग च वाइनार छे. ओकहीर तो पग वाले के आ॥ ग्रन्यो द्वारा संघमां ज्ञान धोरण घणु ऊचुंजशे. कमविषयकजेसाहित्य वीतराग शासननी महान समृद्धिरूप छे, प्रस्तुत ग्रन्थे तेने वधु समृद्ध बनाव्यु छे. जैनदर्शननो कर्मवाद जगतमा मोखरे छे. इतर दर्शनो पासे कर्मविषयक ज्ञान बिन्दु छे, जैन दर्शन पासे तेनो सिंधु छ. जगतना जीयोने शांति, समाधि, आबादी अने समृद्धिनी प्राप्तिमा 'कर्मवाद' विषयक ज्ञान खूब महत्त्चनु छ, जैनदर्शनना कर्मपादनु यथार्थज्ञान जीवोने दुःखमां समाधि, सुखमा सावचेती अने गमे तेत्री कारमी यातनाओनो हसता मुखे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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