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शास्त्रोना आधारो, अनेकानेक हेतुओ अने युक्तिमो वगेरेनु प्रतिपादन तेश्रो करे छे अने त्यार पछी तेना आधारे गाथाओ तथा विवेचनो तैयार थाय छे, गाथा रचनार मुनिश्री पण खूप कालजीपूर्वक संक्षेपमा पदार्थों संगृहीत थाय ए रीते गाथाओनी रचना करे छे अने विवेचन कारो पण घगा ज परिश्रम पूर्वक संस्कृतभाषामा टीकाग्रन्थरूप खाण तैयार करे छे. गाथा तथा टीका तैयार थया पछी बन्ने मुनिमगवंतो गाथा पो त गा टीकार्नुलखाग जोई ले छे अने योग्य सुधारावधारा कर्या बाद तैयार थयेली प्रेसकॉपीर्नुपू०आवार्य भगवंत खूबन झीणवटयी वांचन करी तेमा रहेली नानी मोटी क्षतिओनसमार्जन करे छे, उपरांत आ विषयना बीजा निष्णातो द्वारा प्रेसकॉपीनुसंशोधन थाय छे. आ रीते तैयार थयेला ग्रन्थोनु मुद्रण कार्य भारतीय प्राच्य तत्त्वप्रकाशन समिति संभाळी ले छे. फोनु संशोधन अने शुद्धिपत्रक खूब कालजी पूर्वक झीणवटथी थतु होबाथी शुद्धिकरण सारु थाय छे.
आ साहित्य सर्जनमा 'खवगसेढी' उपशमनाकरण ग्रन्थो लखाई गया छे, बंधनकरणना विषयने लगता बंधविधान नामना महाशास्त्रनु निर्माण थई रह्यं छे. बंधविधानमात्र घणु विशाल अने महान थशे. तेमां प्रकृतिबंध, स्थितिवन्ध, रसबंध अने प्रदेशवः एम चार विभाग थशे. दरेकना मूल उत्तरभेद तथा भूयस्कारने आशरी लगभग १४ थी १५ ग्रन्थप्रमाण (दोढ थी वे लाख श्लोकप्रमाण) बंधविधान शास्त्र थवानीधारणा छे. बंधविधान ग्रन्थना पदार्थ संग्राहक मुनिश्री जयघोषविजयजी म. धर्मानन्दविजयजी म० तथा मुनिश्री वीरशेखरविजयजी छे. बंधविधानशास्त्रनी लगभग १५ हजार मूलगाथानी प्राकृतभाषामां रचना करनार मुनिश्री वीरशेखरविजयजी छे. तेमज जुदा जुदा भागोनी गाथाओ लई तेना उपर संगृहीत पदार्थोना आधारे तथा बीजां अनेक शास्त्रोनी सहायथी जुदा जुदा मुनिबरो टीकानी रचना करी रह्या छे. मूलप्रकृतिना स्थितिबंधना अधिकारना टीकाकार मुनिश्री जगच्चन्द्रविजयजी महाराज छे, ते 'मूलपडिठिबंधो' ग्रन्थ तैयार थई गयो छे अने प्रस्तुत ग्रन्थनी साथे ज प्रकाशित थई रह्यो छे.
प्रस्तुत ग्रन्थनी रचना ग्रन्थना पदार्थो पूज्य मुनिश्री जयघोषविजयजी महाराज, पूज्य मुनिश्री धर्मानन्दविजयजी महाराज, में (मुनि हेमचन्द्रविजय) तथा मुनिश्री गुणरत्नविजयजीए संगृहीत कर्या छे. संगृहीत पदार्थोना आधारे मुनिश्री गुणरत्नविजयजीए प्राकृतगाथाओ तथा संस्कृतटीकारूप ग्रन्थन आलेखन कयु छे.
- पदार्थसंग्रहकार पूज्य जयघोषविजय म० तथा पू० धर्मानन्दवि० म० बन्ने कर्मविषयकशास्त्रोना निष्णात छे. आगमोमां अने तेमां पण विशेष करीने छेदसूत्रोमां तेमणे नोंधपात्र परिश्रम कर्यो छे, पू. आचार्यदेवश्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजानी पुण्यभावनाने..
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