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प्रस्तावना
68 ] पूज्यपादश्रीनी पुनित निश्रामां मुमुक्षु पाठशाळा द्वारा वैराग्यवासित थयेला आत्माओने संयममार्गनी केळवणी आपवामां आवी. चातुर्मास बाद पालीताणाथी पूज्य आचार्यदेवश्रीनु मुंबई तरफ पधारवानु थयु. पू. गुरुदेवश्री आगळ पहोंच्या. रस्तामा सुरत मुकामे त्रण भाईओ तथा बे बहेनोने चारित्र प्रदान करी तेओ मुंबई पधार्या. त्यार पछी पू० आचार्यदेव पण पधार्या. मुंबई नगरीमां तो अक नकुंज आध्यात्मिक चैतन्य प्रगट्यु. पूज्यपादना प्रकृष्ट संयमबले अने पू० पंन्यासजी म० ना वैराग्यमय उपदेशे अनेक आत्माओनो संसारमाथी उद्धार कयों. संवत २००७-२००८ नां चातुर्मास मुंबई लालबागमां थयां. संवत २००९ नु चातुर्मास मुबईना परामां थयु', त्यार पछी बे चातुर्मास दक्षिणमां करी पूज्य आचार्यदेवे संवत२०१२ - चातुर्मास पुनः मुंबईमां कयु, मुंबईनां आ चातुर्मासो दरम्यान संख्यावध वाळ, युवान अने उमरलायक आत्माओओ पूज्यश्रीना सत्समागम अने गुरुदेवश्री ना उपदेशथी संसारना बंधनोने फगावी दई चारित्रना पुनित पंथे प्रयाण कयु. चारित्रमार्गनी प्राप्ति पछी पूज्य आचार्यभगवंतादिगुरुदेवोनी निश्रामा ज्ञान, ध्यान, वेयावच्च, तप, त्याग, समिति, गुप्ति आदिना संस्कारोने झीलता मुनिभगवंतो आध्यात्मिक प्रगतिना पंथे आगळ वध्या. गच्छहितचिंतक पू० (पंन्यासजी)श्रीहेमंतविजयजी म० तथा पूज्य (पंन्यासश्री) पबविजयजी महाराजे पण मुनिओना जीवनघडतर अंगे सारो अवो पुरुषार्थ को.
भव्यात्माओना संयमनोकाना सुकानी पू. आचार्यभगवंतना मनमां संयमरक्षानी माफक श्रुतमार्गनी रक्षा अने प्रभावना अंगेनी विचारणा पण रमती ज हती. तेओश्रीनो श्रुतज्ञाननो रस आजे ८३ वर्षनी उमरे शारीरिकस्वास्थ्यनी प्रतिकूलता दरमियान पण हाथमा रहेलां शास्त्रोनां पानां वतावी आपे छे. जैनशासननां निधानभूत आगमो अने कर्मवाद तेओश्रीनो अत्यंत रुचि. कर विषय छे. तेओश्रीओ जाते आगमो अने कर्मसाहित्य विषे घणुज मंथन अने मनन करेलुछे. आचार्यपद जेवा जबाबदारीभर्या स्थाने, शासननी अने गच्छनी अनेकविध चिंताओना बोज कच्चे पण रात्रिना समये कलाको सुधी कर्मप्रकृति, ओघनियुक्तिआदिग्रन्थोना पदार्थोनु चिंतन तेओश्रीने चालु ज रहेतु. कर्मसाहित्यना विशाल सर्जन माटेनी झंखना वर्षाथी तेओश्रीना हृदयमा रमती हती. तेओश्रीओ संक्रमकरणना विवेचनरूप बे भागो, कर्मसिद्धि, मार्गणाद्वारविवरण आदि कर्मविषयक ग्रन्थोनु स्वहस्ते आलेखन कयु छे. तेओश्रीनी अंतरेच्छा कर्मप्रकृतिनां आठे करण उपर विशद विवेचन तैयार करवानी हती. पोतानी अंतरेच्छा पूर्ण करवा माटे तेमनी नजर नवदीक्षित मुनिवृद उपर पडी, मुनिओने संस्कृत-प्राकृत भाषानु अध्ययन कराव्या पछी आचार्यभगवंते पोतेज कर्मसाहित्यनो अभ्यास कराव्यो अने बार मास जेवा टूका गाळामां तो कर्मग्रन्थ, पञ्चसंग्रह अने कर्मप्रकृतिना पदार्थो मुनिओने कंठस्थ करावी दीधा.त्यार बाद सामुदायिक अध्ययनमां परस्परनी सहायथी आ क्षेत्रमा सारु खेडाण थयु. कर्मग्रन्थ, कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह वगेरेना पदार्थों
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