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________________ प्रस्तावना [ 65 अन्य ग्रन्थोनो साक्षी:- उपर्युक्त कर्मप्रकृति, कर्मप्रकृतिचूर्णि, शतक, शतकचूर्णि, सप्ततिका, सप्ततिका चूर्णि, कपायप्राभृत, कपायप्राभृतचूर्णि उपरांत प्रस्तुत खवगसेढी ग्रन्थमां बीजा पण अनेक ग्रंथोनी साक्षीओ आपवामां आवेली छे. तेमां कर्मसाहित्यविषयक ग्रन्थो मुनिचन्द्रसूरिकृत कर्मप्रकृतिचूर्णिटिप्पन, कर्मस्तव, कर्मप्रकृतिटीका, गुणस्थानक नारोह, गुणस्थानक्रमारोहवृत्ति, प्राचीन कर्मस्तव, पंचसंग्रह, पंचसंग्रहटीका वगेरे छे. अवसरे अवसरे टिप्पणमां धवला, जयधवला, गोम्मटसार, क्षपणासार आदि ग्रन्थोनो पण उल्लेख करवामां आवे छे. आ सिवान आगमो, व्याकरणग्रन्थो, कोशी, प्रकरणग्रन्थो, न्यायग्रन्थो वगेरेनी पण अनेक साक्षीओ छे. इतरदर्शनोओ मानेला मुक्तिना स्वरूप निरास करवामां सम्मतितर्क, स्याद्वादरत्नाकर, रत्नाकरावतारिका, स्याद्वादमञ्जरी, षड्दर्शनसमुच्चय, न्यायालोक, न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रन्थोनो ग्रन्थकारे सारो उपयोग कर्यो छे. आ वधा ग्रंथो तथा तेना कर्ता वगेरे प्रसिद्ध छे भेटले अमे से बाबतमां अत्रे विशेष लखता नथी. वर्तमानमां चाली रहेलु कर्मसाहित्यना सर्जननु कार्य परमाराध्यपाद पुनितनामधेय कारुण्यनिधि सिद्धांतमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहेबना पवित्र नामथी जैनसंघ सुपरिचित छे. तेओ श्री जीवन संयममार्गनी उच्च आराधनाथी अत्यंत सुवासित छे. पांसवना दीर्घसंयमपर्याय मां ते ओश्रीए जाते रत्नत्रयीनी अपूर्वं साधना करी छे अने बीजा अनेक आत्माओने करावी पण छे. तेओश्रीनी पुनित निश्रामां आजे लगभग अढीसो मुनिवरो संयममार्गने सुखपूर्वक आराधी रह्या छे, तेओश्रीओ पोतानी निश्रामां रहेला मुनिवरोने ज्ञानादिनु अब सुंदर दान कयुं छे के जेना परिणामे आजे अनेक प्रभावक उपदेशक, तचज्ञानी, तपस्वी अनं वेयावच्च करनार मुनिभगवंतोथी तेओश्रीनो विशाळ गच्छ शोभी रह्यो छे अने जगत उपर महान उपकार करी रह्यो छे. वर्त्तमानकाले जैनसंघ उपर अमाप उपकार करनार, पंचाचारना पालनमां प्रवीण, पट्कावजीवना रक्षक, संघकौशल्याधार, बात्सल्यनिधि, आचार्य भगवंतना मार्गदर्शन मुजब तेओश्रीनी अंतरेच्छानुसार कर्म साहित्यनु विशाल सर्जन थई रघु छे, तेमां प्रस्तुत ग्रन्थ प्रथम पुस्तक तरीके प्रगट थई रह्यो छे भेटले पूज्यश्रीनी निश्रामां थई रहेला कर्मसाहित्यना सर्जननी प्रवृत्ति अंगे पण थोडो ख्याल आपको जरूरी लागवाथी अत्रे आपवामां आवे छे. पूज्यपाद पुनितनामधेय आचार्य भगवंते संवत २००५ मां पोताना विद्वान शिष्यरत्न मुनिराजश्री भानुविजयजी (हाल पंन्यासजी तथा मारा पू० गुरुदेवश्री ) महाराजने चातुर्मास माटे मुंबई मोकल्या. पू. गुरुदेव श्रीनी वैराग्यमय वाणी अने तपोमय जीवनथी अनेक आत्माओमां वैराग्यनां बीज खायां अने तेना फळ रूपे संवत २००६नी सालमांत्रण आत्माओए संयममार्गे प्रयाण कर्यु . त्यार पछी संवत २००६मां पू० आचार्यदेवश्रीनु तथा गुरुदेव श्रीनु चातुर्मास पालीताणा मुकामे थयुं. त्यां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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