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________________ प्रस्तावना [81 चूर्णि नी व्याख्यापद्धति पण जुदा ज प्रकारनी छे, कषायप्राभतचूर्णिमां ठेर ठेर "एत्थ सुत्तगाहा" कहीने सूत्रनी गाथा कही छे, केटलांक ठेकाणे अमुक अर्थमां केटली गाथाओ छे ते पण जणाव्युछे. जेमके 'एत्थ तिण्ण सुत्तगाहाओ हवंति तं जहा' । कोई कोई स्थले “पदच्छेदो तं जहा" कहीने सूत्रगाथानां पदोना अर्थ कर्या छे. “एदासिं गाहाण पदच्छेदो । तं जहा-एस सुत्त फासो" वगेरे पदो कपायप्राभतचर्णिमां अमुक स्थले जोवा मले छे, ज्यारे कर्मप्रकृतिचर्णिमां आ पद्धति नथी. कर्मप्रकृतिचूर्णिमां मुख्यत्वे पदो ने प्रतीकरूपे लई तेनो पदच्छेद करवापूर्वक व्याख्या करी छे, क्यांय 'सुत्तफामा सुत्तगाहा' वगेरे कयुनथी, पदच्छेद करवा पूर्वे पण 'गाहाण बदच्छेदो' पण का नथी. कपायप्राभूतचूर्णिकारे घणां स्थलोमां सूत्रनां पदोनु उच्चारण कर्या विना सूत्र द्वारा सूचित अर्थनी विस्तारथी प्ररूपणा करी छे. आ उपरांत पण बीजी अनेक रीते कपायप्राभूतचूर्णि अने कम्मपयडिचर्णिमा व्याख्याशैलीना भेदो जोवामां आवे छे, जेनो वांचकोने बन्ने चर्णिओ वांचवाथी सुदर रीते ख्याल आवी शके छे.भिन्न कर्तानी भाषाओमां पण घणी वार साम्यता आवे छे, दा० त० कमप्रकृतिनी मलयगिरि म० कृत टीकामां अने उपाध्यायजी यशोविजयजी कृत टीकामां भाषानी घणी ज साम्यता छे, छतां वन्ने टीकाओना कर्ता भिन्न छ, माटे अककत्व साबित करवा भापानी साम्यतानुकारण उपस्थित करायुछे ते प्रमाणभूत नथी. कमां अमारूं कहेवानु तात्पर्य ओछे के जे कारणो ओक कतकत्व माटे रज करायां छे. ते कारणो वास्तविक नथी, अटलुज नहीं पण अमे जे मतभेदोना पाठो आप्या छे, ते अक कर्ताना पण जुदा जुदा ग्रन्थोमां होई शके छे, केम के चूर्णि के टीकाना कर्ता जे ग्रन्थनी चूर्णि के टीका करता होय छे तेओ मुख्यत्वे ते ग्रन्थकारने अनुसरता होय छे, अटले एकज टीकाकारनी जुदा जुदा ग्रन्थनी टीकाओमां पण पदार्थभेद होय छे, समर्थ टीकाकार मलयगिरि महाराज कृत घणी टीकाओमां आवा भेद जोगा मळे छे, अटले बीजां प्रबल प्रमाणो होय त्यारे पदार्थभेदथी भिन्न कर्तानी अने बीजां कोई प्रबल प्रमाण सिवाय अंक मात्र पदाथेनी साम्यता, अने भाषानी आंशिक साम्यताना कारणे अक कर्तृ कत्वनी कल्पना करवी ते उचित नथी. हा, जो अना माटे बीजुं कोई प्रबल प्रमाण प्रस्तावनाकारे रजू कयु होत तो आ बधी चूर्णिओर्नु अककत कत्व जरूर आपणे मानी शकत.तात्पर्य ओ छे के चारे चर्णिओ ओक कर्तानी नथी ज अम अमारे नथी कहेवू परंतु आ चारे चर्णिओ अक कर्ता द्वारा रचायेली छे अवो निर्णय पण उपलब्ध प्रमाणोथी थई शकतो नथी. हाल तो अना कर्ता कोण छ, ते ज्ञानी गम्य ज मानवु रह्य, भविष्यमां विशेषसामग्री मळतां अ बाबतनी विचारणा थई शके.. कदाच भविष्यमां बीजां प्रमाणोथी चारे चूर्णि अकज कर्तानी छे एवु सावित थाय तो पण चारे चूर्णिना कर्ता तरीके त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता सावित थई शकता नथी, केम के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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