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________________ 60] प्रस्तावना पुरिसवेदो पडिग्गहो ण होतित्ति ते दस पुरसवेदूरणेसु चउसु संजलणेसु समयूरणदुप्रावलियमेत्तं संकमिति । (कर्मप्रकृतिचूर्णि पृ० २२.) अटलुज नहि पण उपरोक्त मान्यतानुसारे मोहनीयनी १८ प्रकृतिनो संक्रम पांच अने चार प्रकृतिना पतद्ग्रहमां कर्मप्रकृतिनी प्रक्षिप्त (भाष्य) गाथामां मान्यो छे ज्यारे मात्र चारना ज पतद्ग्रहमा १८ प्रकृतिनो संक्रम कषायप्राभृतनी प्रक्षिप्त (भाष्य) गाथामां मान्यो छे, १८ प्रकृ. तिर्नु संक्रमस्थान उपशमश्रेणिमां क्षायिकसम्यग्दृष्टिने स्त्रीवेदनो उपशम थया पछी प्राप्त थाय छे, (लोभ नपुंसकवेद अने स्त्रीवेद सिवाय) अने ते बखते कर्मप्रकृतिकारना हिसावे पुरुषवेदनी पतद्ग्रहता नष्ट नथी थई, माटे १८ नो संक्रम पांचमां थाय छे, अने पुरुषवेदनी प्रथमस्थिति समयोन बे आवलिका बाकी रहे त्यारे पतद्ग्रहता नष्ट थाय छे, अटले चारना पतद्ग्रहमां१८ नो संक्रम थायछे कषायप्राभृतचूर्णिना हिसावे स्त्रीवेद उपशांत थतानी साथे ज पुरुषवेदनी पतद्ग्रहता नष्ट थती होवाना कारणे चारना पतद्ग्रहमां ज अढार प्रकृतिना संक्रमस्थाननी प्राप्ति थाय छे, पांचना पतद्ग्रहमां अढार प्रकृतिना संक्रमस्थाननी प्राप्ति थती नथी अने लगती पण कर्मप्रकृति अने कषायप्राभृतमां जुदी जुदी गाथाओ नीचे प्रमाणे छ पंचसु एगुणवीसा अट्ठारस पंचगे चउक्के य । (कर्मप्रकृति संक्रमकरण गाथा. १८) पंचसु च ऊणवीसा अट्ठारस चदुसु होति बोद्धव्वा । (कषायप्राभृत गाथा ३५) ततो वीसाउ णपुसकवेदे उवसामिए एगुणवीसा भवति । सा एगुणवीसा तम्मि चेत्र पंचविहे संकमति अन्तोमुहुत्तं । ततो एगुणवीसाउ इत्थीवेदे उवसामिए अट्ठारस भवंति । ते अट्ठारस तंमि चेव पंचविहे बंधे संकमति अन्तोमुहुत्तं । (कर्मप्रकृतिचूर्णि संक्रमकरण पृष्ठ २१.) ___अहीं ध्यान खेंचवा जेवी बाबत अ पण छे के कर्मप्रकृतिना तथा कषायप्राभृतना संक्रमकरणनी केटलीक गाथाओ समान छे, अने बन्नेनी आ गाथाओनी चर्णि मळती नथी. तेमां आ गाथानो पण समावेश थाय छे, बन्ने ठेकाणे प्रक्षेप जणाती गाथाओमां पण आ रीते पदार्थ भेद जोवामां आवे छे, कर्मप्रकृतिनी आ गाथाओ विषे कर्मप्रकृतिचूर्णिटिप्पणमां मुनिचन्द्रसूरि महाराज पाछलथी भाष्यकारे करेली होवार्नु जणावे छे. "छव्वीस सत्तवीसाण संकमो" इत्यादि गाथा एकादश न चूर्णिकृता व्याख्याता अतो ज्ञायते चूर्णिकारोक्त. संक्रमस्थानमार्गणामुपजीव्य भाष्यकारेण पश्चात्कृता।" प्रस्तुत पाठो उपरथी जोई शकाय छे, के कर्मप्रकृतिपूर्णि अने कपायप्राभृतचूर्णिमां पदार्थोनी भिन्नमान्यताओ पण केटलांक स्थलोमां मळे छे, तेथी पदार्थोनी समानताना कारणे अकककत्वनी कल्पना करी लेवी उचित नथी. __ भाषापद्धतिनो भेदः-भाषानी साम्यताने प्रस्तावनाकार अककत कत्वना कारण तरीके बतावे छे. परंतु कर्मप्रकृतिचूर्णि, तथा कषायप्राभृतचूर्णि, बन्नेमा आवता अमुक शब्दोनी साम्यताना कारणे अककत कत्वनो निर्णय थई शके नहि, अटलुज नहि कर्मप्रकृतिचूर्णि अने कषायप्राभत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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