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________________ 2] प्रस्तावना - (१) त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता यतिवृषभ नक्की नथी. (२) चारे चूर्णि त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता यतिवषभनी रचित छे अम जे गाथा परथी नक्की करवा प्रयास थाय छे, ते गाथानो पाठ प्रमाणभूत नथी, केम के 'चुण्णिस्सस्वत्थकरणं' पाठ हस्तलिखितप्रतमां छे, 'चुण्णिस्सरूवछक्करण' अयो पाठ मुद्रित त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा छे. परंतु 'चुण्णिस्सरूवठकरण' अो पाठ क्यांय नथी, जयधवला प्रथमभागनी प्रस्तावना, 'तिलोयपण्णत्ति और यतिवृषभ' नामनो पंडित जुगलकिशोर मुख्तारनो लेख (वर्णी अभिनंदनग्रन्थ पृ० १२३) 'लोकविभाग और तिलोयपग्णति' नामनो नायूराम प्रेमोनो लेख ( जैन साहित्य और इतिहास पृ० ६) वगेरेमा आ गाथा ज्यां जोगामां आवे छे, त्यां क्यां य प्रस्तावनाकारे स्वीकारेल 'चुपिणस्सरूवकरण' वाळो पाठ जोवामां आवतो नथी (३) गाथानो अर्थ जे रीते कयों छे ते रीते संगत नथी. वळी कर्मप्रकृतिमा मात्र आठ करणनी ज बात नथी, परंतु आठकरण उपरांत उदय अने सत्तानो अधिकार पण छे. (४) उपलब्ध त्रिलोकप्रज्ञप्तिने कपापणाभृतचणिना कर्ता क नथी ओअमे पूर्वे अनेक प्रमाणो थी सावित कयु छे. आम गाथामांना 'त्थ' नो 'ट' करीने बंधनादि आठकरणरूप अर्थ ग्रहण करी त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी अंतिम गाथामां आवता 'जदिवसह' पद उपरथी त्रिलोकप्रज्ञप्ति ना कर्ता तरीके यतिवषभने कल्पी भाषानु साम्य अने पदार्थोनु साम्य वगेरे कारणो द्वारा चारे चर्णिने त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता दिगम्बराचार्य यतिवपभाचार्यना नामे चडावी देवानो जे प्रयत्न प्रस्तापनाकारे कयों छे ते अनेक प्रमाणोथी बाधित थई जाय छे. कपायप्राभृतचूर्णिना प्रस्तावनाकारे पृ० ५६ उपर कर्मप्रकृतिपूर्णिनी भाषानु छेल्ला अढीसो, त्रणसो वर्षमां जाणीबूजीने परिवर्तन कर्यानो जे आक्षेप कयों छे, तेनो पण उत्तर जरूरी लागवाथी अमे सप्रमाण रजू करीये छीओ प्रस्तावनाकारर्नु अम कहेवुछे के कर्मप्रकृतिचूर्णिना संस्कृतटीकागत पाठो करतां कर्मप्रकृतिनी मुद्रित चूर्णिना पाठोनी भाषा जुदी छे अने तेथी भाषामां जाणीजोईने कोई छेल्ला अढीसो त्रणसो वर्षमा परिवर्तन कयु छे. आ कथनना समर्थनमां तेमणे संस्कृतटीकामांथी उद्धत पांच पाठो अने मुद्रित चूर्णिना ते ज पाठो रजू कर्या छे. अमारे आ बावतमा मात्र अटलुज कहेवानुछे के विद्वान प्रस्तावनाकारे आवो आक्षेप करवा पूर्वे जो कर्मप्रकृतिनी चूर्णिनी तेनी कोई प्राचीन प्रति अथवा फोटोकॉपी लई तेमां पाठोनी भाषा जोई होत तो तेमने आलु लखवानो श्रम लेवो न पडत अने अमारे पण आटलो खुलासो करवो न पडत. प्रस्तावनाकारना आपेलां पांचे स्थानो अमे जेसलमेरना भंडारनी संवत १२२२मां लखायेली प्राचीन प्रतिनी फोटो कॉपीमां जोयां छे, तेभां प्रथम स्थानमां चूर्णिनो पाठ (संस्कृतटीकागत) समान छे ज्यारे वाकीना चारे पाठ मुद्रितचूर्णिनापाठने मळता आव्या छे. प्राकृतग्रन्थोनी प्राचीन प्रतिओमां भाषाना अनेक प्रकारना भेदो होय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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