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________________ 44] प्रस्तावना (३) दिगंबरग्रन्थकार इन्द्रनन्दिना वचनथी पण जयधवलाकारर्नु उक्त वचन बाधित थाय छे. ते आ रीते इन्द्रनन्दिना कथन मुजब कषायप्राभृत उपर चूर्णिसूत्रो तथा उच्चारणाचार्यनी टीकानी रचना थया पछी कुडकुदपुरमां पद्मनन्दिमुनिने अनी प्राप्ति थई छे, पद्मनन्दि से प्रसिद्ध दिगंबराचार्य कुंदकुंदाचार्यनुज बीजुं नाम छ, षट्खंडागम अने कषायप्राभूतनी प्राप्ति कुंदकुदाचार्यने थई छे, अटलुज नहीं पण तेमणे षट्खंडना प्रथम त्रणखंड उपर 'परिकर्म' नामनी वारहजार श्लोकप्रमाण टीका रची छे. जुओ श्रुतावतारतस्यान्ते पुनरुच्चारणादिकाचार्यसंज्ञकेन ततः । सूत्राणि तानि सम्यगधीत्य ग्रन्थार्थरूपेण ॥१५७।। द्वादशगुणितसहस्रग्रन्थान्युच्चारणाख्यसूत्राणि । रचितानि वृत्तिरूपेण तेन तच्चूर्णिसूत्राणाम् ।।१५८|| गाथाचूण्र्युचारणसूत्रैरुपसंहृतं कषायाख्यं । प्राभृतमेवं गुणधरयतिवृषभोच्चारणाचार्यैः ॥१५९।। एवं द्विविधो द्रव्यभावपुस्तकगतः समागच्छन् । गुरुपरिवाटया ज्ञातः सिद्धान्तः कुण्डकुन्दपुरे ॥१६०।। श्रीपद्मनन्दिमुनिना सोऽपि द्वादशसहस्रपरिमाणः । ग्रन्थपरिकर्मका पट्खण्डायत्रिखण्डस्य ॥१६१।। वळी धवलामां पण अनक स्थळे परिकमनी साक्षी आवे छे. जुओ (१) त्ति परियम्मवुतं" (धवला अ० पृ० १४९) (२) परियम्मम्मि वुत्तं (धवला अ० पृ० ६७८) (३) परियम्मवयणादो णव्वदे (धवला भ० पृ० १६७) अटलुज नहीं अक स्थले तो धवलाकारे परिकर्मनो बधा आचार्योने सम्मत ग्रन्थ तरीके उन्लेख कयों छे. __ "सयलाइरिय सम्मदपरियम्मसिद्धत्तादो" धवला प्रस्तावनाकारना कथन मुजब प्रायः धवलाना परिकर्मसूत्रने लगता उल्लेखो पण षट्खंडागमना त्रणखंडना विषय उपर ज छे, आ सिवाय पण अनेक प्रमाणोथी 'परिकर्म' नामनी टीका रचायानुजणाय छे. कुदकुंदाचार्ये 'परिकर्म' टीकानी रचना करी छे, ओ उल्लेख स्पष्ट साबित करे छे के कषायप्राभूतचूर्णिकार ओ कुंदकुंदाचार्यथी पूर्ववर्ती छे अने कुंदकुंदाचार्यनो काळ हालनी दिगम्बरमान्यता मुजब गणीये तो पण विक्रमनी पहेली बीजी के त्रीजी सदीनो थाय छे. दिगम्बरपट्टावलीओना आधारे कुन्दकुन्दनो काळ विक्रमना पहेला वीजा सैकानो नक्की थाय छे 'विद्वद्जनयोधक' मां कुन्दकुन्दाचार्यनो काल वीर संवत ७७० नो अटले विक्रम संवत ३०० लगभगनो बताव्यो छे. "वर्षे सप्तशते चैव सप्तत्या च★ विस्मृतौ । उमास्वातिमुनिर्जातः कुन्दकुन्दसथैव च ॥१॥ ओसिवाय कुर्ग इन्स्क्रिपशंसमां मर्कराना ताम्रपत्र उपरथी कुन्दकुन्दनो काल जयधवलानी प्रस्तापनामां विक्रमनी त्रीजी सदी पूर्वेनो वताव्यो छे. गमे तेम होय पण जयधवलाना कथन तथा त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी गाथाओना आधारे कषायप्राभृतचर्णिनी वीर संवत १००० पछी रचना थई *विसतो, इति प्रतिभाति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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