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आम सप्ततिका चूर्णिकारे जे विषय अंगे कपाप्राभृतचूर्णिनो अतिदेश क्यों छे, तेव योनी प्राप्ति आपणने कैटलेक ठेकागे कायामृतमूलमां तथा केडलांक स्थळे कपानप्राभूतचूर्णिमां थाय छे, अटलु ज नहि, शतकचूर्णिमां पण वर्गणाओना वर्णन वखते धुवाचित आदि वर्गगाओनां नाम, पुलो प्रमाण, वर्गणाओनी संख्या वगेरे आप्युं छे, पण वर्गणाओनो अर्थ जोन माटे "एतासि अत्थो जहा कम्पयसिंगहणी" ( शतक चूर्णि पृ० ४३ ) कहने कर्म प्रकृति संग्रहगीनो अतिदेश कर्यो छे अने ते अर्थनी प्राप्ति आणने कर्म कृतिमूलनां नहि पग चूर्णिमां जोगा मले छे. आ बधा परथी ओम नक्की थाय छे के कर्म प्रकृतिसंग्रहणी अने कपावप्राभृतना नामथी अतिदेशोमां तेनी चूर्णिओ पण लई शकान छे. कर्मप्रकृति अंगेती विचारणामां आपणे अ पण जोई गया छीओ के कसायपाहुडमां अप्रशस्तउपशमना अंगे कर्मप्रकृतिनो अतिदेश छे अने ते अशस्तोपशमनानी प्राप्ति कर्मप्रकृतिसंग्रहणीनी मूलगायाओमां पण मले छे, आ वधुं जोतां कपाचप्राभृतमूल तथा चूर्णि बने अतिप्राचीन अने श्वेताम्बर परंपराने अनुकूल ग्रंथो छे से स्पष्ट निश्चित थाय छे. कपायप्राभृतमूल तथा चूर्णिनी रचनानो काल
कषायप्राभृतमूल तथा चूर्णिना रचना कालनी विचारणा पण अमारी उपरोक्त मान्यताने ज वधु पुष्टि आपे छे. कपायप्राभृतमूलमां के चूर्णिमां तेना कर्ताना नामनो उल्लेख नथी, तेनाकर्ताना नामनो उल्लेख जयधवलाटीकाना मंगलाचरणमां प्राप्त थाय छे, अने ते उल्लेख पण कायप्राभृतमूलना कर्ता तथा चूर्णिना कर्ता श्वेताम्बर परंपराने मान्य होवानु' अने दिगंबरमतोत्पत्तिथी पूर्वकालीन होवानु' निश्चित करवामां ज विशेषे करीने सहायक छे, कप यत्राभूतमूलना तथा चूर्णिना कर्ता अंगे जयधवलाकारनो उल्लेख आ प्रमाणे छे.
प्रस्तावना
"जेहि कसायपाहुडमणेयणयमुज्जलं भणतत्थं । गाहाहि विवरियं तं गुणहर भडारयं वंदे ||६|| गुणहरवयणविणिग्गयगाद्दाणत्थोवहारिओ सव्वो । जेणज्जमखुणा सो सण हत्थी बरं देऊ ||७|| जो अज्जमंखुसीसो अंतेवासी विणा इत्थि । सो वित्तिमुत्तकत्ता जइत्रसहो मे वर देऊ ॥ ( जयधवला भा. १ पृ० ४)
जयधवलाना आ श्लोको कपायाभूतमूलना कर्ता तरीके गुणधर अने चूर्णिना कर्ता तरीके आर्यमंगुना शिष्य अने आर्यनागहस्तीना अंतेवासी यतिवृषभनु नाम जगावे छे, अटल ज नहीं पण एक स्थळे जयधवलामां गुणवाने वाचक तरीके पण कया छे, "एतेन शङ्का द्योतिता आत्मीया गुणधरवचाकेन” । काप्राभृतमूलना कर्ता गुणधरनो वाचक तरीके उल्लेख अने मना तरी आनं अने आर्थनागहस्तीने थयेल यातना अर्थनी प्राप्ति बन्ने वातो कायप्राभृतना कर्ता गुणधर वाचकवंशमां थया होवानुं विशेषे करीने सिद्ध करे छे, केम के आर्यमं अने आर्यनागहस्ती तो वाचकांशमां सुप्रसिद्ध छे अने आर्यनागहस्ती कर्मप्रकृति वगेरेना विशेष जाणकार होवानो पण उल्लेख छे. आ वधु जोतां गुणधरवाचक,
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