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________________ प्रस्तावना [31 सत्तामां हो जजोई, अनी भजना न होई शके, केमके द्रव्यचारित्र वगर (चारित्रना लिंग वगर) तापसादिना वेशमां केवलज्ञाननी प्राप्ति के क्षपकश्रेणि दिगम्बर परंपराने मान्य नथी. आथी ज चूर्णिनु प्रस्तुत सूत्र निर्ग्रन्थलिंग (चारित्रवेश) विना पण क्षपकश्रेणिनी प्राप्तिनी श्वेताम्बर मान्यताने ज पुष्टिकारक छे, अने अटला ज माटे जयधवलाटीकाकारने प्रस्तुतसूत्रनी व्याख्यामां 'सबलिंग' नो 'णिग्गंथवदिरित्तसेसाण' अवो अर्थ खेंचीने करवो पडयो छे. चूर्णिसूत्रमाथी आ अर्थ निकळतो ज नथी. जो चूर्णिकारने निर्ग्रन्थलिंगमां बंधायेल कर्म नियमा अने निर्ग्रन्थव्यतिरिक्त लिंगमां बंधायेल कर्म भजनाओ कहेवु होत तो "णिग्गंथेसु णियमा सेसलिंगेसु भज्जाणि" अg कईक जरूर का होत, केम के चूर्णिकार आवा स्पष्ट भेदोपाडे ज छे. क्षेत्र, शाता अशाता, लेश्याओ वगेरेमां बंधायेल कर्मोने लगती सत्ताना चर्णिसूत्रोमां से स्पष्ट रीते जणाय छे. जुओ-'छसु लेसासु सादे असादेण च बद्धाणि अभजाणि । कम्मसिप्पेसु भज्जाणि । खेत्तम्हि सिया अधोलोगिगं, सिया उड्ढ़लोगिगं, णियमा तिरियलोगिगं ।' (क० प्रा० चू० पृ० ८२७) (ii) ऋजुसूत्रनयने कषायप्राभृतचर्णिमां द्रव्यार्थिकनय तरीके जणाव्यो छे. “नेगम-संगह ववहारा सब्वे इच्छंति उजुपुदो ठवणबज्जे" (क० प्रा० चू० पृ० १७.) जयधवलाना प्रस्तावनाकारे का छे के 'दिगम्बर परंपरामा पहेलेथी ज नैगम, संग्रह अने व्यवहारनयने द्रव्यार्थिक अने ऋजुसूत्रादिनयोने पर्यायार्थिक कह्या छे' जुओ-दिगम्बर परंपरा में हम पहिले से ही व्यवहार पर्यन्त नयों को द्रव्यार्थिक तथा ऋजुसूत्रादि नयों को पर्यायार्थिक मानने की परम्परा देखते हैं।" जयधवलाकारे पण द्रव्यनयो नैगमादि त्रण ज स्वीकार्या छे अने ऋजुसूत्रनो पर्यायार्थिक नयमां समावेश को छे. जुओ-"तत्र द्रव्यार्थिकनयत्रिविधः संग्रहो व्यवहारो नैगमश्चेति ।" (जयधवलाभाग १ पृ० २१९ ) पर्यायार्थिकनयो द्विविधः अर्थनयो व्यञ्जननयश्चेति । तत्र ऋजुसूत्रोऽर्थनयः । (जयधवला भाग १ पृ० २२२) अहीं कषायप्राभतर्णिकार ऋजुसूत्रनयनो द्रव्यार्थिकनयमा समावेश करवा द्वारा श्वेताम्बराचार्यांनी सैद्धांतिक परंपराने अनुसरे छ कारणके श्वेताम्बरोमां सैद्धान्तिकपरम्परा ऋजुसूत्र नयनो द्रव्यार्थिक नयमांसमावेश करे छे. जो के श्वेताम्बर परंपरामांसिद्धसेनदिवाकरसूरि महाराज वगेरे ऋजुसूत्र नयनो समावेश पर्यायार्थिक नयमां करे छे पण ते मतान्तर समजवो. सैद्धान्तिक परंपरा तो ऋजुसूत्र नयनो द्रव्यार्थिकनयमांज समावेश करे छ. जुओ-'आचार्य सिद्धसेनमतेन चेह ऋजुपूत्रस्य पर्यायास्तिकेऽन्तर्भावो दर्शितः । सिद्धान्ताभिप्रायेण तु संग्रह-व्यवहारवद् ऋजुसूत्रस्यापि द्रव्यास्तिक एवान्तर्भावो द्रष्टव्यः तथा चोक्तं सूत्रे-उजुसुयस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगं दव्यावस्सयं पुहुत्तं नेच्छइ ।' (वि० आ० भाष्यनी टीका भाग १ पृ० ४३)दिगंबर परंपरामांऋजुसूत्रनयनो द्रव्यार्थिक नपमा समावेश जणातो नथी, ज्यारे प्रस्तुत चर्णिसूत्र (तथा षटखंडागममूळसूत्र)मां आ रीतनो समावेश जोवामां आवे छे, जे प्रस्तुतचर्णिकार श्वेताम्बर आम्नायने अनुसरनारा अथवा तो दिगम्बरमतोत्पत्तिनी पूर्वे थयानी अमारी मान्यताने विशेष पुष्टि आपे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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