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________________ प्रस्तावना [29 प्रथम गाथामां शेमांथी कहीश ते कानथी. अंतिम गाथाओमां पण घणी ज समानता छे. त्रणेमा ग्रन्थकार पोतानी क्षतिओने सुधारवा माटे दृष्टिवादना जाणकारोने विनंति करे छे. दृष्टिवादना जाणकारो माटे कर्मप्रकृतिनी गाथामां "वरदिद्विवायन्नू" बंधशतकमां "बंधमोक्खणिउणा" अने सप्ततिकामां "बहुसुया" पदनो उपयोग कर्यो छे. आम त्रणे ग्रन्थनी आद्य अंतिम गाथाओनी समानता, त्रणेनो कर्मप्रकृतिप्राभूतमांथी उद्धार, शतक अने कर्मप्रकृतिनु अककतत्व वगेरे जोतां त्रणेग्रन्थना कर्ता अक ज होय तो सप्ततिकाना पण कर्ता आचार्य शिवशर्मसूरि म० नक्की थाय,परंतु अत्यार सुधीना उपलब्ध ग्रन्थोमां के सप्ततिकानी मलयगिरि म० कृत टीका वगेरेमां सप्ततिकाना कर्ता तरीके आचार्य शिवशर्मसूरि म. ना नामनो उल्लेख जणातो नथी अटले अत्यारे तो मात्र कल्पना सिवाय तेनो चोक्कस निर्णय कोई पण प्रबल प्रमाण सिवाय थई शके नहि, परंतु ग्रन्थ प्राचीनकालमा अने पूर्वधरोना कालमां रचायो होय अम तो छेल्ली गाथामां दृष्टिवादना जाणकारोने ग्रन्थ शोधवा माटे करेली विनंति उपरथी जणाय छे, जो के त्यां सप्ततिकामां बहुश्रतोने शोधवा माटे का छे पण "बहुसुया" पदनो अर्थ चूर्णिकारे 'दृष्टिवादना जाणकारो' को छे. जुओ चर्णिनो पाठ "तं खमिऊण 'बहुसुता' तं अबराहं खमिऊण दोसं अघेत्तूण बहुसुता दिट्टिवायण्णे" (पृ० ६९.) वळी सप्ततिका मूलग्रन्थनी साक्षी विशेषणवती ग्रन्थमां आचार्य जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणे आपेली छे ते पण ग्रन्थनी प्राचीनताने सिद्ध करे छे.सप्ततिकाचणि अ सप्ततिका उपरर्नु प्राचीन विवेचन छे. अने से पण प्राचीन जणाय छे. सप्ततिकाचर्णिना आधारे पू० मलयगिरि महाराजे सप्ततिका उपर टीकानी रचना करेली छे. कषायप्राभूत मूल तथा चूर्णि प्रस्तुत 'खवगसेढी' ग्रन्थमां कषायप्राभूतचूर्णिनो पण सारो अवो आधार लेवामां आव्यो छे. कषायप्राभृत मूलग्रन्थ घणो ज प्राचीन छे, अने पांचमा ज्ञानप्रवादपूर्वनी दशमी वस्तुना त्रीजा प्राभतमाथी तेनो उद्धार थयेलो होय अबु नीचेना उल्लेखो परथी जणाय छे"पुयम्मि पंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिए । पेज्जति पाहुडम्मि दुहवदि कसायाण पाहुडं णाम ।।" (क० प्रा० गा०१) "णाणप्पवादस्स पुव्यस्स दसमस्स वत्थस्स तदियरस पाहुडस्स पंचविहो उबक्कमो।" (क०मा० चूर्णि पृ० २.) मुद्रित कषायप्राभतनी गाथाओ २३३ छे ज्यारे “गाहासदे असीदे अत्थे पण्णरसधा विहत्तम्मि" अबा उल्लेख परथी १८० सिवायनी बाकीनी ५३ गाथाओ प्रक्षेप गाथाओ होवानो संभव छे. जोके क० प्रा० मूळग्रंथ, चूर्णि तथा जयधवलाटीका साथे मूडविद्रीना दिगम्बरज्ञानभंडारमाथी उपलब्ध थयो छे अने तेनु हिंदी अनुवादसहित अनेक भागोमां भा० दि० जैनसंघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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