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प्रस्तावना
[26 जणं अगुवेत्तुकामेण विच्छिन्न सम्मायडिमहागंथत्थसंबोहणत्थं आरद्धं आयरिएणं तग्गुणणामर्ग कम्मपयडीसंगहणी नाम पारणं ।" (कम् नपयडि चूर्गि पृ० १ )
प्रस्तुत कर्मप्रकृतिसंग्रहणीनो उल्लेख घणा प्राचीन ग्रन्थोमां पण जोवामां आवे छे. श्रीपन्नवणासूत्रना २३ मा 'कम्मपयति' नामना पदनो वृत्तिमा हरिभद्रसूरिमहाराजाओ पण 'कम्मपयडिसंगहणी' नो उल्लेख करी प्रस्तुत कर्मप्रकृतिसंग्रहणीनी बे गाथा (७९,८३ ) साक्षी तरीके आपी छे. तेवीं ज रीते वीजा ओक स्थाने (मुद्रित पृ० १३९) कम्मपयडिनी ९६ मी गाथानी साक्षी आपी छे. तत्त्वार्थसूत्रनी सिडसेनोय टीकामां तथा आचारांगसूत्रनी वृत्तिमां पण प्रस्तुत कर्मप्रकृतिसंग्रहणीनी गाथाओनी साक्षी आवे छे, उपरथी आ कर्मप्रकृतिसंग्रहणी (मूल) ग्रन्थ अतिप्राचीन अने अनेक गीतार्थ बहुश्रुत महापुरुषोने मान्य छे अ सिद्ध थाय छे.
कर्मप्रकृतिना कर्ता तरीके आचार्य शिवशर्मसूरि म० ना नामनो उल्लेख कर्मग्रन्थादि अनेक ग्रंथोमां जोवा मळे छ. “यदाह श्रीशिवशर्मसूरिवरः कर्मप्रकृतौ" (४ थो कर्मग्रन्थ गाथा १२ नी टीका १० ११२ अ.) बंधनकरण तथा बंधशतकचूर्णिना नीचेना उल्लेखो परथी पण कर्मप्रकृतिना कर्ता आचार्य शिवशर्मसूरि महाराज सिद्ध थाय छ
"एवं बधणकरणे परूविए सह हि बंधसयगेणं" (कर्मप्रकृतिबंधनकरण गाथा १०२.) मलय० टीका:-"एतेन किल शतककर्मप्रकृत्योरेककर्तृता आवेदिता द्रष्टव्या" । तत्थ एयं पारणं पमाणणिप्फन्ननामगं सतगं ति । किं णिमित्तं कयं ? ति णिमित्तं भणियं। केण कयं ? ति शब्दतर्कन्यायप्रकरणकर्मप्रकृतिसिद्धान्तविजाणएण अणेगवायसमालद्धविजएण सिवसम्मायरियणामधेजेण कयं । (शतकप्रकरण गा० १ नी चूर्णि पृ० १) ।
पंधशतक अने कर्मप्रकृतिना कर्ता अक छे अने बंधशतकना कर्ता तरीके शतकचूर्णिकारे शिवशर्मसूरि म० ना नामनो उल्लेख कर्यो छे, ते उपरथी पण कर्मप्रकृतिना कर्ता तरीके आचार्यशिवशर्मसूरि म० नक्की थाय छे.
___ आ कर्मप्रकृतिसंग्रहणीना कर्ता आचार्य शिवशर्ममूरि महाराज पूर्वधर हता, (दृष्टिवादनाज्ञाता हता) जे शतकनी प्रथमगाथा तथा तेनी चूर्णि उपरथी जणाय छे
“योच्छं कइवयाओ गाहाओ दिट्ठिवायाओ"-(गा० १ ली उत्तरार्ध. पृ० १.) दिट्टिवायाओ त्ति आयरियपायमूले विणएण सिक्खियाओ दिद्विवायाओ कहेमि"(शतक चूणि पृ०२.)
चूर्णिकार "दिट्टिवायाआ" नो अर्थ करता जणावे छे के 'आवार्यना चरणकमलमां विनयपूर्वक शीखेला दृष्टिवादमांथी कहीश' आ उपरथी जणाय छे के शतकना कर्ता आचार्य शिवशर्मसूरि म दृष्टिवादना ज्ञाता हता. कर्मप्रकृतिनी छेल्ली गाथाना उत्तरार्धमां तेओश्री दृष्टिवादना ज्ञाताओने पोताना ग्रन्थमां थयेल अनाभोगजन्य भूलो सुधारवा माटे जणावे छे ते उपरथी
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