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प्रस्तावना
ग्रन्थनी विशेषताओ
न्याय अने दर्शनना विषय उपरांत ग्रन्थमां अनेक स्थले शब्दोनी व्युत्पत्ति वगेरे करती वखते व्याकरणसूत्रोनी साक्षीओ बतावेली छे, गणितानुयोग पण प्रस्तुतग्रंथमां घणो छे. अने ते सुंदर रीते झळक्यो छे. ग्रन्थनो लगभग छट्ठो भाग गणितानुयोगमां रोकायेलो छे. पुद्गलोना आय-व्यय ( आगमन-गमन), रसनी हानि, स्थितिनो घात, अपूर्वस्पर्धकप्ररूपणा, किट्टिओ वगेरे विपयोमा अंडाणथी अने सूक्ष्मताथी गणितानुयोग रज् थयेलो छे. गणितानुयोगनो विषय सरल करवा माटे असंख्य अने अनंतना कठिन गणितने ठेर ठेर आंकडाओ द्वारा अने संज्ञाओ द्वारासमजावेल छे, जेथी गणितना विषयमा अल्प बोधवाला जीवो पण सुगमताथी समजी शके. संस्कृतभाषामा गणितानुयोगने समजाववामां टीकाकार विद्वान मुनिवर सफल थया छे. अटल जनहि पण गणितानुयोगमां तद्दन बिनअनुभवीने पण कंटाळले न उपजे ओ माटे गणितनो विषय दरेक स्थळे जुदो पाडी देवामां आव्यो छे. पहेलां सामान्यथी पदार्थनु कथन करी, ज्यां गणितायोगमा विशेष अंडा उतरवा जेवु छे त्यां 'अथ गणितविभागः' अम कहीने गणितानुयोगनी शुरुआत करी, पूर्ण करती वखते ' इति गणितविभागः ' अ प्रमाणे गणितानुयोगनी समाप्ति करी छे, जेथी गणितानुयोगनो बोध न होय तेओने गणितानुयोग छोडीने बाकीनो ग्रन्थ वांचवामां बच्चे विषयी संकलना तूटती नथी.
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अश्वकर्णकरणाद्धा अधिकारमां रपर्द्धकोनी रचना केवी रीते होय छे तेमां प्रत्येक वर्गणामां रस अविभाग तथा कर्मप्रदेशो, उत्तरोत्तर वर्गणाओमां रस-अविभागनी वृद्धि अने कर्मप्रदेशोनी हानि थतां थतां प्रथम स्पर्द्धक करतां उत्तरोत्तरस्पर्धकमां जेटलामुं स्पर्धक होय स्थूलदृष्टिथी तेटला गुणा अविभागो तथा सूक्ष्मदृष्टिथी किंचित् न्यून तेटला गुणा अविभागो कंवी रीते थाय, अबधुं असत्कल्पनाथी स्पर्धकों, वर्गणाओ, अविभागो, वर्गणाओनो चय, गुणहानि वगेरेनी संख्याओ नक्की करी स्पष्ट समजाई जाय ते रीते वर्णववामां आव्युं छे. अपूर्वस्पर्धकनी रचना पछी पूर्व अने पूर्वस्पर्धकोना अनुभागने आशरीने स्थापना पण बताबाई छे. किट्टिकरणद्धाना प्रथमसमये पूर्व अने अपूर्व स्पर्धकांथी कलां दलिकोने ग्रहण करी तेमांथी केटली किट्टिओनी रचना केवी रीते करे छे. ते पण बताव्यु ं छे. संग्रह किट्टिओ, अवांतर किट्टिओ वगेरेमां दलिक वर्हेचणीना गणित पण घणी ज सूक्ष्मता निरूपण कयुं छे. किट्टिकरणाद्धा अने किट्टिवेदनाद्वानी अंदर दीयमान अने दृश्यमान दलिकना विषयमा अधस्तनशीपचयदलिक, उभयचयदल, अधस्तन किट्टिदल, अने मध्यमखंड दलनी प्ररूपणामां तो खरेखर गणितानुयोग पराकाष्ठाए पहोंच्यो छे. गणितानुयोगना वर्णनमां ठेर ठेर भास्कराचार्य वगेरेनां गणितसूत्रो पण रजू करवामां आवेलां छे, गणितानुयोगनुं ऊंड अने विशाल विवेचन जोतां आ ग्रन्थ द्रव्यानुयोगनो होवा छतां वर्तमानमां उपलब्ध गणितानुयोगना ग्रन्थोमां पण येणे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कयुं छे.
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