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________________ 22] प्रस्तावना आवे तो ज ते पदार्थोनो विशाल बोध आपणने थार अने वीजा जीवोने पण लाभ थाय, ओ दृष्टिबिंदुने लक्ष्यमा लईने पूर्वपुरुषोना ग्रन्थोना आधारे आ ‘खवगसेढी' ग्रन्थनु सर्जन थयु छे. - प्रस्तुत ग्रन्थनो विषय प्रस्तुत ग्रन्थ 'खवगसेढी' जेने आपणे संस्कृतमां के गुजरातीमां क्षपकश्रेणि कही छीओ ते सूक्ष्मतत्वज्ञानविषयक ग्रन्थ छे. अमां कर्मविषयक अत्यन्त ऊंडु ज्ञान भरेलु छे. क्षपकश्रेणि अटले कर्मक्षपणा माटे उद्यत थयेला जोवने गुणस्थानको उपर चउवानी श्रेणि अर्थात् कर्मनो नाश करता जीवनो विशिष्ट गुणस्थानको उपर आरोहणनो जे क्रम ते क्षपकश्रेणि. प्रस्तुत ग्रन्थमां क्षपकश्रेणि प्राप्त करवाने योग्य जीव कोण छे, त्यांधी मांडीने मुक्तिनी प्राप्ति सुधीना विषयनो नव अधिकारोमां सुंदर संग्रह करायो छे. क्षपकश्रेणिनो प्रारम्भ करनार जीवनी केवी अवस्था होय छे, ते केटलां कर्मोनो बंधक होय छे,केवी लेश्यावालो होय, केवा उपयोगवालो होय, केवा योगवालो होय, वगेरे विस्तृत रीते बतावीने पछी क्षपकश्रेणिमां जीव केवी रीते आगळ वधे छे, यथाप्रवृत्तकरणमां शुशु करे छे, यथाप्रवतकरणमां केवी विशुद्धि होय छे, केवा अध्यवसाय होय छे, अपूर्वकरणमां स्थितिघातादि कंत्री रीते करे छ, केट ली प्रकृतिओनो बंधमांथी विच्छेद करे छे, त्यार पछी अनिवृत्ति करणमां पण स्थितिघातादिथी कर्मनी स्थिति अने रसने केवी रीते ओछां करतो जाय छे, कषायअष्टक तथाथीणद्धित्रिकादि सोलप्रकृतिनो क्षय करीन अंतरकरण केवी रीते करे छे, त्यार पछी नव नोकषायनो क्षय करी संज्वलनक्रोधनो क्षय केवी रीते करे छे, फरीथी मानादिनी प्रथमस्थिति करीने केवी रीते क्षय करे छे अने छेवटे संज्वलनलोभनी मूक्ष्मकिट्टिओ नवमा गुणस्थानके केवी रीते बनावे छे, सूक्ष्मकिट्टिने वेदता दशमागुणस्थानके बाकीनी किट्टिओनो क्षय करी क्षीणकषायगुणस्थानकने प्राप्त करी शेष त्रण घातिकर्मनो क्षप करी जीव केवलज्ञान केवी रीते प्राप्त करे छे, अबधी वातो आ ग्रन्थमां सुंदर अने विशाल विवेचन पूर्वक बताववामां आवी छे अने तेमां पण साथे भिन्न भिन्न कपाय अने वेदना उदयथी क्षपकश्रेणिनो प्रारम्भ करनार जीवोने प्रक्रियाना तारतम्यनुपण आलेखन करवामां आव्यु छे. उपरांत तेरमा गुणस्थानकना अंते थतां समुद्घात, आयोजिकाकरण अने योगनिरोध तथा चौदमागुणस्थानकरूप शैलेशीकरण द्वारा थता नवा कर्मबंधनो अटकाव अने पूर्वकर्मनी निर्जरानो अधिकार बतावी मुक्तिनी प्राप्ति अने मुक्तिनु स्वरूप वगैरे पदार्थोनो पण ग्रन्थमा संग्रह करवामां आव्यो छे. जेनेतरदर्शनकारोओ मुक्तिना कल्पेला स्वरूपनो युक्तिपूर्वक निरास करवामां आव्यो छे, अने जैनदर्शने वतावेल मुक्तिना स्वरूपनी यथार्थता सिद्ध करवामा आवी छे. आ रीते तर्कशैलीथी दार्शनिकविषय पण ग्रन्थमा सारी रीते आलेखायेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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