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प्रस्तावना
(191 स्वरूपनो ख्याल आवे छे अने आत्मानी वर्तमानकर्मबद्धपरिस्थितिने पण जाणी शकाय छे, अटले आत्माना शुद्धस्वरूप अने आत्माना वर्तमानस्वरूपना अन्तरनी ओळखाण थया पछी स्वरूप-प्राप्ति तरफ प्रयाण थई शके छे.
द्वादशांगीनो विषय समुद्र जेवो विशाल छे. तेमांजीव, कर्म, पुद्गल, पुण्य, पाप, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काळ, जीवनी संसारमां गतिओ,योनिओ, अवस्थाओ, पुद्गल(जडद्रव्य)नी अवस्थाओ, जीवनी शक्ति, पुद्गलनी शक्ति, पुद्गलना भेदो, पुद्गलनोजीव उपर प्रभाव, जीव उपर कर्मनुबळ, जीवने कर्मना बंधनमांथी स्वतंत्र थवानो मार्ग वगेरे अनेक विषयोनु विस्तृत वर्णन छे. द्वादशांगीमां अध्यात्म, साहित्य, न्याय, ज्योतिष, वैदक, मंत्र, यंत्र, तंत्र आदि जगतना सर्व विषयोचें ज्ञान रहेलु छे, द्वादशांगीनो विषयविस्तार आपणी कल्पना बहारनो छे. अम कहीओतो चाले के द्वादशांगी अतीर्थकर भगवानना तीर्थन सर्वस्व छे, अटलाज माटे द्वादशांगीने पण तीर्थ कहेवामां आवे छे, द्वादशांगीमां छेल्लु अंग दृष्टिवाद छे. दृष्टिवादनो विषय घणो ज विशाल छे. दृष्टिवादना मुख्य पांच विभाग छ, (१)परिकर्म २) सूत्र (३) प्रथमानुयोग (४) पूर्वगत (५) चूलिका. अमांना पूर्वगतनी अंदर चौदपूर्वनो अधिकार छे. चोदपूर्वनो विषय करोडो पद प्रमाण विस्तृत छे.
द्वादशांगीनी परंपरा श्री सुधर्मा गणधर भगवाननी द्वादशांगी जंबूस्वामीने प्राप्त थई, ते पछी तेओश्रीना पट्टधर श्रीप्रभवसामीने अम परंपराओं द्वादशांगीनु ज्ञान उत्तरोत्तर आचार्यभगवंतोने प्राप्त थवा मांडयु परंतु अवसर्पिणीकाळना माहात्म्यने कारणे ज्ञान घटतु घटतु आव्यु तेथी श्रीभद्रबाहुस्वामी सुधी ज सूत्र अने अर्थ उभयथी चौदपूर्वनु ज्ञान पहोंच्यु. स्थूलभद्रस्वामीने सूत्रथी चौदपूर्व तथा अर्थथी दशपूर्वनें ज्ञान मल्यु. त्यार पछी घटतु घटतु वज्रस्वामी सुधी दशपूर्वनु ज्ञान पहोंच्यु, त्यार बाद दशपूर्वना ज्ञाननो पण विच्छेद थयो. आम क्रमशः काळना प्रभावे ज्ञानमां घटाडो थतो आव्यो, छतां होशियार व्यापारी सळगता घरमांथी शक्य तेटलु बचावी ले, तेवी रीते पूर्वाचार्य भगवंतो पण विच्छेद पामता पूर्वना ज्ञानमांथी अनेक प्रकरणादि ग्रन्थोनी रचना करवा द्वारा श्रतनी शक्य तेटली रक्षा करवानो पुरुषार्थ कर्यो, जेना फल रूपे पूर्वना ज्ञाननो सवथा अभाव थवा छतां पूर्वोमांथी उद्धत दशवकालिकादि अनेक ग्रन्थो आजे पण आपणने उपलब्ध थाय छे. चौदपूर्वमांथी बीजा अग्रायणीयपूर्वमां तेमज पांचमा ज्ञानप्रवाद पूर्वमां अने आठमा कर्मप्रवाद पूर्वमां कर्मविषयक सुंदर संग्रह हतो, वर्तमानमां उपलब्ध कर्मप्रकृति, कषायप्राभृत, शतक, सप्ततिका, कर्मप्राभृत आदि अनेक ग्रन्थो पूर्वोमांथी उद्धृत छे.
कर्मनु स्वरूप विश्वमा अनंतानंत जीवो छे, तेम अनंतानंत पुद्गलस्कंधो छे. पुद्गलस्कंधोना अनेक
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