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सम्पादकीय
इता. पदार्थोंनी नोंध पू० मु० हेमचन्द्र वि० महाराज करता हता, त्यारे पूज्यपाद परमाराध्यपाद आचार्य भगवंते मने संस्कृतमां कर्मसाहित्यनुं सुंदरशैलीमां आलेखन करवा सूचन क . पण ते वखते मने जरा य आत्मविश्वास हतो ज नहि के आ कार्य हुं करी शकीश. विनम्रभावे "हुं अज्ञ शीरी आ सर्जन करी शकुं" ओम में मारी अशक्ति दर्शावी, पण पूज्यश्रीनी वेधक
कोई अलौकिक छे. तेओश्रीओ मारा जेवा केई भव्यात्माओनी सुषुप्त शक्तिओने प्रेरणाना बुलंद आवाज थी जाग्रत करी छे. तेओश्रीनी प्रेरणा वारंवार चालु हती. शुक्लध्यानना पायारूप द्रव्यानुयोगना परिशीलननी महत्ता, आवा विषयना आलेखनथी प्राप्त थती आंतरमुखता अने अनेक शास्त्रो प्रासंगिक अवगाहन वगेरे अनेक लाभो दर्शाव्या. तेओश्रीनी वात्सल्यमयी प्रेरणाथी उत्साहित बनी संस्कृतमा लेखन करवा नक्की क अने पूर्वोक्त त्रणे मुनिवरोनी चालती पदार्थ संकलननी प्रवृत्तिमां हुं जोडायो, केटलाक विषयोनु व्यवस्थित संकलन कर्मा पछी उपशमनाकरणनी टीका (विवेचन) लखवानी प्रारंभ कर्यो. ते कार्य पूज्यपादश्रीनी निःसीमकृपाथी अने प्रेरणाथी समाप्त या बाद क्षपकश्रेणिनो विषय संस्कृतमां गद्यरूपे लखवो शरू क. ४ थी ५ हजार श्लोक प्रमाण लखाण थया बाद मने विचार आग्यो, के जुदा जुदा ग्रन्थोमां छूटी छपाई वर्णवाली 'क्षपकश्रेणि' व्यवस्थित कोई अक ग्रन्थमां जोवामां आवती नथी. जैनशासनमां महचनी गणाती 'क्षपकश्रेणि' ना जुदा जुदा ग्रन्थोमांथी संगृहीत विषयनो प्राकृतभाषामा स्वतंत्र ग्रन्थ तैयार थाय, तो ते मोक्षाभिलाषी भव्यात्माओने घणो लाभदायी बने, गद्य निर्वाधरूपे लखाता ग्रन्थ करतां प्राकृतमां गाथा बनावी टीका द्वारा अनु स्पष्टीकरण थाय, तो ठीक..... .आ विचारधारा पूज्यश्री समक्ष में मूकी. तेओश्रीओ ओ शरते मारी वात कबूल राखी के गाथा रात्रे अंधारामां नववी अने दिवसे सुधारी लई तेना पर विवेचन लखवु . ते ओश्रीनो शुभाशय से हतो के दिवसनो वधु उपयोगी समय गाथा बनाववा पाछल खर्चाई जवो न जोईओ. पूज्यश्रीनी इच्छानुसार ये रीते रात्रे ४०-५० गाथाओ बनाव्या पछी पूर्वकृत कोई अशातावेदनीयकर्मना उदये हुं टाइफॉइडनी विमारीनो भोग बन्यो अने गाथा बनाववानुं काम बंध पड्यु दोढ महिना पछी फरी दिवसे गाथाओ बनाaat शरू करो अने २५० उपर गाथाओमां ग्रन्थनो विषय संकलित थयो. तेना पर टीका आलेखन पण थयुं त्यारबाद कर्मसाहित्यना मुद्रणनी योजना थई, क्षपकश्रेणिग्रन्थ छपाचवा नक्को थयु' अने सम्पादननु कार्य पण मने सोंपायें .
सम्पादननी शैली
(१) मूलगाथाओनो संस्कृतमां छायारूपे पदसंस्कार आप्यो छे.
(२) मूलगाथाओ, पदसंस्कार, वृत्ति वगेरेनी भिन्नता दर्शावत्रा जुदा जुदा टाइपोनी पसंदगी करवामां आवी छे.
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