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________________ सम्पादकीय कोई रंकने राज्यप्राप्ति स्वप्न ज्यारे सत्य ठरे त्यारे अने केवो आनंद थाय ? 'खवगसेढी' ग्रन्थ तैयार थयेलो जोईने हुं पण अवो ज कोई अवर्णनीय आनंद अनुभव छ, केटलाक सूक्ष्म, गहन अने अगम्यभावोनो तादृशचितार शब्दोमां नथी आपी शकातो. आत्माना केवलज्ञान, केवलदर्शन जेवा महानगुणोने प्राप्त करवामां जे क्षपकश्रेणिनी प्रक्रिया अनिवार्य छे. तेम तेनी प्ररूपणा पण अक गहन विषय छे. छतां अनंतज्ञानी श्रीतीर्थंकर भगवंतोना वचनना सहारे पूर्वमहर्षिओओ ज्ञानलब्धिथी ओ भात्रोनो उचित शब्दोमां समवतार करी शक्य तेटल अनु स्वरूप उपसान्यु ं छे. ते पूर्वमहर्षिओना पगले मारो पण आ अक अल्प प्रयत्न छे. आजे भौतिकविज्ञाननो विकास थई रह्यो छे, तेना प्रत्यक्ष फल रूपे जोई शकाय छे के आध्यात्मिकतानो भव्य वारसो आ भारतदेशमांथी पण झडपथी घसातो जाय छे. ते युगमां पण मने संघकौशल्याधार गच्छाधिपति संयमत्यागतपोमूर्ति सिद्धान्तमहोदधि पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेम सूरीश्वरजी महाराजानो सत्समागम थयो अने तेओश्रीओ मारी मोहवासनाने गाळी वि० सं० २०१० मां मंगलमय चारित्रधर्मनु दान कर्यु कर्मसाहित्य जेवा सूक्ष्म, गहन विषयमा रसिक बनाव्यो. असीम उपकार करी व्याकरण न्यायनो अभ्यास करावी क्षपकश्रेणिना विषयमा रस जगाव्यो, तेथी आ ग्रन्थनी सुंदरतानो यश ते पूजनीय अनंत उपकारी महापुरुषना फाळे जाय छे. पूज्य सिद्धान्तमहोदधि परमगुरुदेवश्रीनी कृपा, प्रेरणा अने प्रोत्साहनना बले ज वे हाथे सागर तरवा जेवु आ भगीरथ कार्य उत्साहथी करी शक्यो छु . ग्रन्थ आलेखननी जेम सम्पादननो पण आमा प्रथम प्रयत्न छे. तेथी आवा तात्त्विक, सूक्ष्मतमविषयोना ग्रन्थोनां आलेखननी जेम अनु शुद्ध सम्पादन पण जवाबदारी भर्यु अने प्रयत्नसाध्य लाग्यु . खवगसेढीनु' लेखन अने सम्पादन: परमपूज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवंते मने पांच कर्मग्रन्थ त्यारबाद ते ओश्रीनी आज्ञाथी सं० २०१५ मां सुरेन्द्रनगरमां पू० विजयजी महाराजे 'कम्मपयडी' नुं अध्ययन कराव्युं, ते समये मुनिवरो पू० श्री जयघोषविजयजी म०, पू० श्री धर्मानंदवि० म०, पू० श्री हेमचन्द्रविजयजी म०, उपशमनाकरण तथा खवगसेढोना पदार्थोंनु संकलन करी रह्या संगीन अध्ययन कराव्यु. मुनिवर्यश्री हेमचन्द्रसुरेन्द्रनगरमां विद्वद्वर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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