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________________ ६८ ज्ञानार्णवः प्रकरण __ श्लोकांक १-२४ पृष्ठांक २४०-२४७ १३. विषय मैथुन स्त्रीसंगका बीभत्स रूप और उसका निषेध १-२४ २४०-२४७ १-४४ संसर्ग २४८-२६० स्त्रीसंगके परिणाम और स्त्रीसंगसे विरक्त होने का उपदेश २४८-२६० १-४७ २६१-२७६ १-३ ४-१० ११-४७ २६१-२६२ २६२-२६४ २६४-२७६ वृद्धसेवा वृद्धसेवाका कारण वृद्धोंका लक्षण वृद्धसेवाकी प्रशंसा परिग्रहदोषविचार परिग्रह और उसके भेद परिग्रहसंगके परिणाम संगत्यागका उपदेश १६. १-४१ २७७-२९० १-५*१ ६-३८*२ ३९-४१ २७७-२७८ २७९-२८८ २८८-२९० १-२१ आशापिशाची २९१-२९६ १-२१ आशाके परिणाम और निःस्पृहताका महत्त्व २९१-२९६ १८. अक्षविषयनिरोध २९७-३४७ १-१५२ १-११ २-४ २९७ २९८ २९८-३०२ ३०२-३०३ १५-१८ २०-२६ २७-३७ ३८-१०८ १०९-११४ ११५-१२६ १२७-१५० १५१-१५२ महाव्रतका लक्षण पचीस भावनाएँ, पांच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ ईर्या, भाषा, एषणा, आदान और व्युत्सर्ग समिति मन, वाक् और कायगुप्ति समितिगुप्तियोंका फल रत्नत्रयकी प्रशंसा आत्माका स्वरूप और उसके दर्शनका उपदेश क्रोध, मान, माया और लोभका परिणाम क्रोधादि कषायोंके निरासका उपदेश इन्द्रियनिग्रहकी आवश्यकता इन्द्रियसुखकी निन्दा इन्द्रियजयका फल ३०४-३०५ ३०५-३०९ ३१०-३३४ ३३४-३३६ ३३६-३३९ ३३९-३४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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