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________________ प्रकरण श्लोकांक ७. १-२३ ८. ९. १०. ११. १२. १-३ ४-७ ८-२३ १-५७ १-४ १-४२ १-६ ७ १३ १४-४२ Jain Education International १-२० १-२ ३-२० १-४८ १-५ ६-१२ १३-४८ ५ ६-८ ९-२८ २९-३२,४०-४२ अहिंसाकी प्रशंसा ३३-३९, ४३-४५ ४६-५७ १-५९ १-५५ विषय-सूची ५६-५९ विषय ज्ञानोपयोग सम्यग्ज्ञानका लक्षण और उसके भेद मति श्रुत, अवधि और मन:पर्ययज्ञानके भेद केवलज्ञानका स्वरूप और श्रेष्ठता अहिंसात सम्पवचारित्रका लक्षण और उसके भेद व्रतका स्वरूप अहिंसा महाव्रतका स्वरूप और फल हिंसाके भेद और परिणाम हिंसाका भयानक स्वरूप अहिंसाका फल सत्यव्रत सत्यका स्वरूप और उसकी प्रशंसा असत्यकी निन्दा सत्य और सत्यवादियोंका माहात्म्य तथा असत्य और असत्यवादियोंके दोष चौयंपरिहार अभद्रत चौर्यकी निन्दा और चोरी न करनेका उपदेश कामप्रकोप ब्रह्मचर्यव्रतकी प्रशंसा दस प्रकारका मैथुन और उसका परिणाम कामका भयावह स्वरूप स्त्रीस्वरूप स्त्रियोंका भयानक स्वरूप और उनसे दूर रहनेका उपदेश शीलवती स्त्रियोंकी प्रशंसा For Private & Personal Use Only पृष्ठांक १५९-१६८ १५९ १६०-१६३ १६३-१६८ १६९-१८७ १६९-१७० १७१ १७१-१७२ १७२-१७९ १७९-१८०, १८९ १८०-१८२, १८३ १८४ - १८७ १८८-२०१ १८८-१८९ १८९-१९१ १९१-२०१ २०२-२०७ २०२ २०२-२०७ २०९-२२२ २०९-२१० २१०-२१२ २१२-२२२ २२३-२३९ ६७ २२३-२३७ २३८-२३९ www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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