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________________ ६६ ज्ञानार्णवः प्रकरण पृष्ठांक श्लोकांक १२८-१३० १३१-१३९ १४०-१४८ १४९-१७० १७१-१७७ १७८-१९० १९१-१९३ विषय संवर और उसके भेद संवरका स्वरूप और फल निर्जरा-स्वरूप, भेद तथा फल धर्म और उसकी श्रेष्ठता लोकका स्वरूप रत्नत्रयस्वरूप मोक्षकी दुर्लभता द्वादश भावनाओंका महत्त्व ६६-६८ ६९-७१ ७२-७८ ७८-८० ८०-८३ ८४-८५ १-३५*१ ध्यानलक्षण १-५ ६-१४ १५-२५ २६-३५*१ नरजन्मको दुर्लभता और चार पुरुषार्थ मोक्षका स्वरूप और मोक्षप्राप्तिका कारण ध्यानकी सामग्री और फल ध्यानके तीन भेद और फल ८६-१६ ८६-८७ ८७-८९ ९०-९२ १-६० १-५ ६-८ ९-१७ १८-२१ २१+१-२७ २७२१-६० ध्यानगुणदोष ध्यानके भेद ध्याताके गुण घरमें रहनेसे ध्यानसिद्धि नहीं मिथ्याष्टिसे भी ध्यान सिद्धि नहीं मिथ्यादर्शनोंके भेद ध्याताके दोष ९७-१२२ ९७-९९ ९९-१०० १०१-१०३ १०४-१०६ १०६-१०९ ११०-१२२ १-२८२१ १-१९ योगिप्रशंसा १२३-१३३ योगियोंका स्वरूप-मनकी स्थिरता, तप, निःसंगता, पवित्र आचरण आदि योगियोंके गुण हैं १२३-१२७ योगियोंकी प्रशंसा १२८-१३३ २०-२८१ १-५८ १३४-१५८ १-४२१ ५-६४ ७-७१ १३४-१३५ १३५-१३७ १३७-१३८ दर्शनविशुद्धि सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्रसे ही मोक्ष सम्यग्दर्शनका स्वरूप और भेद सम्यग्दर्शनके दोष जीव, अजीव आदि सात तत्त्व जीवतत्त्वका वर्णन पाँच द्रव्य और उनका स्वरूप-(अजीव तत्त्व) बन्धतत्त्वका वर्णन सम्यग्दर्शनकी प्रशंसा ९-२४ २५-४४ ४५-४८२१ ४९-५८ १३९-१४४ १४६-१५३ १५४-१५५ १५५-१५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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