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________________ प्रकरण श्लोकांक १. २. १-४९ १-६ ७-९ १०-११ १२-१३ १४- १७ १८-२० २१-२४ २५-३० ३१-३५ ३६-४४ ४५-४९ १-१९३ १-४ ५-७ ८-४७ ४८-६६ ६७-७१ ७२-८३ ८४-९३ ९४-९९ १००-१०५ १०६-११८ ११९-१२३ १२४-१२७ [3] Jain Education International विषय-सूची विषय पीठिका परमात्मा, ऋषभदेव, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, श्रीवर्धमान और इन्द्रभूतिकी बन्दना सर्वज्ञशासनको प्रशंसा संसारकी असारता और ग्रन्थप्रयोजन ग्रन्थकारका विनय समन्तभद्रादिकोंके वाङ्मयकी प्रशंसा ग्रन्थ रचनेका कारण शास्त्रज्ञानकी उपयोगिता असत् शास्त्रोंकी निन्दा ग्रन्यका गुणदोषविवेचन करना आत्मशुद्धिका मार्ग मोक्षका स्वरूप और दुर्लभ नरजन्ममें मोक्षप्राप्ति के लिए प्रयत्नका उपदेश द्वादश भावना संसारकी नश्वरता और भावशुद्धिका आश्रय लेनेका उपदेश द्वादश भावनाओं की श्रेष्ठता इन्द्रियसुख संबन्ध, शरीर पदार्थ आदिकी अनित्यता " मृत्युका प्रभाव और जीवकी असहायता जीवोंका संसारमें भ्रमण जीवोंका उत्कृष्ट तथा निकृष्ट योनिमें जन्म और सुख दुःखोंकी अशाश्वतता जीवका अकेलापन आत्माकी शरीरादिसे भिन्नता पिता-पुत्र आदि सम्बन्धों की अनित्यता शरीरकी अपवित्रता और अनित्यता आस्रवका स्वरूप और शुभ आस्रव अशुभ आसव For Private & Personal Use Only पृष्ठांक १-२२ ४-८ ८-९ १० ११ ११-१२ १२-१३ १३-१४ १४-१६ १६-१७ १८-२० २१-२२ २३-८५ २३-२४ २५ २६-३७ ३८-४४ ४५-४६ ४६-४९ ४९-५३ ५३-५६ ५६-५७ ५७-६२ ६२-६३ ६३-६५ www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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