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________________ -११ ] ३३. संस्थानविचयः (1696 ) अधो वेत्रासनाकारो मध्ये स्याज्झल्लरीनिभः । मृदङ्गास्ततोsप्यूर्ध्वं स त्रिधेति व्यवस्थितः ||८ 1697 ) अस्य प्रमाणमुन्नत्या सप्त सप्त च रज्जवः । सप्तैका पञ्च चैका च मूलमध्यान्तविस्तरे ॥ ९ 1698 ) तत्राधोभागमासाद्य संस्थिताः सप्त भूमयः । यासु नारकषण्ढानां निवासाः सन्ति भीषणाः ॥ १० 1699 ) काचिद्वानलप्रख्याः काचिच्छीतोष्णसंकुलाः । तुषारबहुलाः काश्चिद्भूमयो ऽत्यन्तभीतिदाः ॥ ११ 1696) अधो वेत्रास नाकारः - [ वेत्रासनाकारः वेत्रासनम् इव आकारः यस्य सः । मृदङ्गाभः मृदङ्गसदृशः । इति सूत्रार्थः ||८|| ] अथास्य प्रमाणमाह । ५६१ 1697 ) अस्य प्रमाणम् - [ अस्य लोकस्य प्रमाणं मानम् । उन्नत्या उच्चैः । शेषं सुगमम् ||९|| ] अथ तदेवाह । 1698) तत्राधोभागम् — तत्र लोके अधोभागमासाद्य सप्त भूमयो व्यवस्थिताः । यासु सप्तभूमिषु नारकखण्डानां भीषणा रौद्रा निवासाः सन्ति । इति सूत्रार्थः ॥ १०॥ अथ भूमीनां स्वरूपमाह। 1699) काश्चिद् — भूमयो नरकभूमयः । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥ ११ ॥ अथ पुनर्भूमि स्वरूपमाह । वह लोक नीचे वेंतसे निर्मित आसन ( मूढा ) के आकार, मध्यमें झालरके समानगोल चपटा - और ऊपर ( ऊर्ध्वलोक ) मृदंगकी आकृतिवाला है; इस प्रकार से वह तीन आकारोंमें अवस्थित है ||८|| ऊँचाई में उस लोकका प्रमाण सात-सात राजु है, अर्थात् नीचेसे मध्यलोक तक वह सात राजु ऊँचा है तथा उस मध्यलोकके ऊपर अन्तिम भाग तक भी वह सात राजु ही ऊँचा है । इस प्रकारसे वह पूरा चौदह राजु ऊँचा है । मध्यलोक मेरुके बराबर १ लाख योजन ऊँचा 1 । राजु-जैसे महाप्रमाणमें इन योजनोंकी गणना नहीं की गयी है । विस्तार उसका नीचे सात राजु, मध्यलोकके पास एक राजु, ब्रह्मकल्पके पास पाँच राजु तथा अन्तमें एक राजु मात्र है ||९|| लोकके इन तीन विभागोंमेंसे अधोभागके आश्रयसे रत्नप्रभादि वे सात पृथिवियाँ अवस्थित हैं, जिनमें कि नपुंसक नारकियोंके भयानक निवास (बिल) हैं ||१०|| उनमें कुछ नारकभूमियाँ वज्राग्निके सदृश, कितनी ही शीत व उष्ण दोनोंकी वेदनासे व्याप्त और कितनी ही प्रचुर शैत्य से संयुक्त हैं। इस प्रकार वे भूमियाँ अतिशय भयानक हैं ॥ ११ ॥ Jain Education International १. M N L T J X Y मृदङ्गसदृशश्वाग्रे । २. MNT Y मुन्नत्यां, F मौन्नत्यां, J मुत्पन्ना । ३. P सप्तक । ७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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