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________________ ४८ ज्ञानार्णवः श्लोकांश ज्ञानार्णव योगशास्त्र ३. षट्शतान्यधिकान्याहुः 1442 ५-२६२ ४. इत्यजस्रं स्मरन् योगी 1506 १०-२ ५. अनन्यशरणीभूय 1507 १०-३ ६. सो ऽयं समरसीभावः 1508 १०-४ ७. अलक्ष्यं लक्ष्यसंबन्धात् 1620 १०-५ ८. तदष्टकर्मनिर्माण 1891 ९. कृत्वा पापसहस्राणि 1960 ८-३७ १०. अष्टरात्रे व्यतिक्रान्ते 2014 ११. वीतरागो भवेद् योगी 2029 ८-७९ १२. येन येन हि भावन 2076 ९-१४ इनमें १ व २ नं. के श्लोक प्रस्तुत ज्ञानार्णवकी केवल S और R इन दो प्रतियोंमें 'उक्तं श्लोकद्वयम्' इस संकेतके साथ पाये जाते हैं, अन्य किन्हीं प्रतियों में वे उपलब्ध नहीं हैं। श्लोक नं. ६ ज्ञानार्णवकी P प्रतिमें नहीं पाया जाता। इस श्लोकका पूर्वार्ध जैसाका तैसा तत्त्वानुशासनमें भी १३७ संख्याके अन्तर्गत पाया जाता है । श्लोक नं. ११ के पर्व कुछ प्रतियोंमें 'उक्तं च' निर्देश पाया जाता है. कुछ प्रतियोंमें वह उपलब्ध नहीं है । श्लोक नं. १२ ज्ञानार्णवकी PM प्रतियोंमें 'उक्तं च' निर्देशके साथ पाया जाता है। यह आ. अमित गति प्रथम विरचित योगसारप्राभूतमें ९-५१ संख्याके अन्तर्गत उपलब्ध होता है। साधारण परिवर्तन-उक्त दोनों ग्रन्थोंमें बहुत-से श्लोक ऐसे हैं, जिनमें साधारण-सा शब्द-परिवर्तन हुआ है । जैसे उदये वामा शस्ता सितपक्षे दक्षिणा पुनः कृष्णे । त्रीणि त्रीणि दिनानि तु शशि-सूर्यस्योदयः श्लाघ्यः । ज्ञाना. 1383 वामा शस्तोदये पक्षे सिते कृष्णे तु दक्षिणा । त्रीणि त्रीणि दिनानीन्दु-सूर्ययोरुदयः शुभः ॥ यो. शा. ५-६५ यहां दोनों श्लोकोंमें छन्दका परिवर्तन होनेपर भी अधिकांश वे ही शब्द व्यवहृत हुए हैं। मात्र 'शशि'के स्थानमें 'इन्दु' और 'इलाध्य'के स्थानमें 'शुभ' शब्द परिवर्तित हुए हैं। दूसरा एक उदाहरण लीजिए पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवजितम् । चतुर्दा ध्यानमाम्नातं भव्यराजीवभास्करैः ॥ ज्ञाना. 1877 पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवजितम् । चतुर्धा ध्येयमाम्नातं ध्यानस्यालम्बनं बुधैः ॥ यो. शा. ७-८ यहाँ 'ध्यान' के स्थानमें 'ध्येय' और 'भव्यराजीवभास्करैः'के स्थानमें 'ध्यानस्यालम्बनं बुधैः' इतना मात्र पाठ परिवर्तित हुआ है। श्लोक 1889 योगशास्त्रगत श्लोक ७-१४ के उत्तरार्ध और १५ के पूर्वार्ध रूपमें अवस्थित है। इस पूर्धिमें थोड़ा-सा शब्द-परिवर्तन हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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