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________________ प्रस्तावना ४७ ज्ञानार्णव १०. ज्ञानार्णव व योगशास्त्र-आचार्य हेमचन्द्र विरचित योगशास्त्र में भी ज्ञानार्णवके समान अनेक विषयोंकी चर्चा की गयी है तथा उसका भी प्रमुख वर्णनीय विषय योग ही रहा है। इसीसे उसका योगशास्त्र यह नाम भी सार्थक है। वह १२ प्रकाशोंमें विभक्त है। इन दोनों ग्रन्थोंमें इतनी अधिक समानता दृष्टिगोचर होती है कि जिसे देखते हुए यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि एक ग्रन्थको सामने रखकर दूसरे ग्रन्थको रचना की गयी है। दोनोंकी यह समानता न केवल विषय-विवेचनकी दृष्टिसे ही उपलब्ध होती है, बल्कि अनेक श्लोक भी ऐसे हैं जो दोनोंमें अविकल रूपसे पाये जाते हैं। कुछ श्लोकोंमें यदि पादपरिवर्तन हुआ है तो कुछमें उन्हीं शब्दोंका स्थान-परिवर्तन मात्र हुआ है। अभिप्रायकी समानता तो यथाक्रमसे बीसों श्लोकोंमें रही है। यहाँ इस सबको स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया जायेगा। दोनों ग्रन्थोंमें विषयकी समानता इस प्रकार रही हैविषय योगशास्त्र बारह भावनायें 50-246 ४,५५-११० रत्नत्रय 383-927 १-१५से ३-१५५ क्रोधादि ४ कषायें 928-1012 ४,६-२३ इन्द्रियजय 1013-50 ४,२४-३४ मनोनिरोध 1071-1106 ४,३४-४४ राग-द्वेषजय 1107.46 ४,४५-५० साम्यभाव 1147-79 ४,५०-५४ मैत्री आदि ४ भावनाएँ 1270-85 ४,११७-२२ ध्यानस्थान 1286-1309 ४-१२३ ध्यानासन 1310-35 ४,१२४-३६ प्राणायाम 134-2-1443 ५,१-२६३ परकायप्रवेश ( वेध) 1444-52 ५,२६४-७३ प्रत्याहार 1456-58 प्राणायामकी अहितकरता 1459-66 ६, २-५ धारणा 1467-69 ६,७-८ बहिरात्मा आदि जीवभेद 1517-24 १२,७-१२ आज्ञाविचयादि चार भेद 1621-1876 १०,७-२४ पिण्डस्थध्यान 1877-1909 ७,८-२८ पदस्थध्यान 1910-2027 ८,१-७८ रूपस्थध्यान 2033-79 ९,१-१४ रूपातीतध्यान 2094-2111 १०,१-४ शुक्लध्यान 2142-2202 ११,१-६१ ये श्लोक समान रूपसे दोनों ग्रन्थोंमें उपलब्ध होते हैंश्लोकांश ज्ञानार्णव योगशास्त्र १. समाकृष्य यदा 1353 ५-७ २. यत् कोष्ठादतियत्नेन 1354 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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