________________
ज्ञानार्णवः
[२९.३४1546 ) 'इतःप्रभृति निःशेषं पूर्व पूर्व विचेष्टितम् ।
ममाद्य ज्ञाततत्त्वस्य भाति स्वप्नेन्द्रजालवत् ॥३४ 1547 ) यो विशुद्धः प्रसिद्धात्मा परंज्योतिः सनातनः ।
सो ऽहं तस्मात्प्रपश्यामि स्वस्मिन्नात्मानमच्युतम् ॥३५ 1548 ) अपाकृत्येति बाह्यात्मा प्रसन्नेनान्तरात्मना ।
विधूतकल्पनाजालं परमात्मानमामनेत् ॥३६ 1549 ) बन्धमोक्षावुभावेतौ भ्रमेतरनिबन्धनौ ।
बन्धश्च परसंबन्धा त्तद्भेदाभ्यासतः शिवम् ।।३७
1546) इतःप्रभृति-इतःप्रभृति निःशेषं समस्तं पूर्वं पूर्व विचेष्टितं कर्तव्यम् । अद्य मम ज्ञाततत्त्वस्य स्वप्नेन्द्रजालवत् प्रतिभाति । इति सूत्रार्थः ।।३४।। अथात्मानं दर्शयति ।
_1547) यो विशुद्धः-सो ऽहं तस्मादात्मनः स्वस्मिन्नात्मानं प्रपश्यामि । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३५॥ अथ परमात्मानमाह।
___1548) अपाकृत्येति-परमात्मानमामनेत् । कीदृशं परमात्मानम् । विधूतकल्पनाजालम् । शेषं सूगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३६॥ अथ बन्धमोक्षयोः स्वरूपमाह ।
1549) बन्धमोक्षौ-एतौ उभौ बन्धमोक्षौ भ्रमेतरनिबन्धनौ सुगमम् । परसंबन्धात् बन्धः देहादिसंबन्धात् बन्धः । भेदाभ्यासात् ततः शिवं मोक्षमिति सूत्रार्थः ॥३७॥ अज्ञानज्ञानिनोः स्वरूपमाह।
आज जब मुझे वस्तुस्वरूपका यथार्थ ज्ञान प्राप्त हो चुका है तब इस समयसे लेकर पूर्व में मैंने जो भी प्रवृत्ति की है वह सब मुझे स्वप्न अथवा इन्द्रजालके समान प्रतीत हो रही है ॥३४॥
___ जो अतिशय पवित्र, प्रसिद्ध स्वरूपसे संयुक्त, उत्कृष्ट ज्योतिस्वरूप और सदा अवस्थित रहनेवाला है वह मैं हूँ। इसलिए अब मैं अपनेमें अपने अनिश्वर आत्मस्वरूपको देखता हूँ ॥३५॥
बाह्य आत्माका निराकरण करके-शरीरमें आत्मबुद्धिको छोड़कर-निर्मल अन्तरात्माके द्वारा समस्त कल्पनाओंके समूहको नष्ट करके परमात्माका चिन्तन करना चाहिए ॥३६।।
बन्ध और मोक्ष इन दोनोंका कारण क्रमसे मिथ्याज्ञान और यथार्थज्ञान है । बन्ध पर पदार्थों के सम्बन्धसे होता है। तथा मोक्ष परके भेदके अभ्याससे होता है। अभिप्राय यह है कि जब तक भ्रमवश शरीरादिमें आत्मबुद्धि रहती है तब तक कर्मका बन्ध हुआ करता है और जब उस भ्रमके हट जानेपर प्राणी स्वको स्व तथा पर (शरीरादि ) को पर मानकर . प्रवृत्ति करने लगता है तब उसका उस बन्धसे छुटकारा (मोक्ष) होता है ।।३७।। १. All others except PQM N T Y अतः । २. All others except P बाह्यात्मानमपि त्यक्त्वा प्र', Q M N L F मिति for मपि। ३. NJ प्रसन्ने चान्तरात्मनि । ४. बन्धः स्वपर । ५. All others except P L Fधाभेदाभ्यासात्ततः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org