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________________ २२ ज्ञानार्णवः हो । उसके उपदेशको ग्रहण कर मनमें भक्तिभावसे प्रेरित होता हआ मैं बालकोंके प्रबोधके लिए ज्ञानार्णवकी प्रदीपिकाको करता हूँ। साहु टोडरके पितामहका नाम रूपचन्द और पिताका नाम पासा था। पत्नीका नाम कौसुभी था। साहु टोडरके तीन पुत्र हुए-ऋषिदास, मोहनदास और रूपमांगद । साहु टोडर जातिसे अग्रवाल गर्गगोत्रीय थे। बादशाह अकबरके एक विश्वासपात्र उच्च अधिकारी कृष्णामंगल चौधरीके वे मन्त्री थे। श्री पं. परमानन्दजी शास्त्रीने सम समय में होनेवाले टोडर नामक दो व्यक्तियोंको पृथक-पृथक सिद्ध किया हैएक राजा टोडर और दूसरे साहु टोडर ।' कवि राजमल्लने साहु टोडरकी प्रशंसा करते हुए उन्हें सुधी, उदार, कुलदीपक, धर्मतत्पर, देवशास्त्र-गुरुके वत्सल, विनयी और दानी आदि अनेक विशेषणोंसे विशिष्ट किया है। पिताके समान ऋषिदास भी गुणज्ञ, धर्मात्मा और उदारहृदय थे। उनकी प्रेरणा और पं. जिनदासके सहयोगसे पं. नयविलासके द्वारा प्रस्तुत टीका रची गयी है। उसका रचनाकाल विक्रमकी १७वीं शताब्दी समझना चाहिए। क्योंकि साहु टोडरके निकटवर्ती प्रशंसक कवि राजमल्लके द्वारा वि. सं. १६३२ में जम्बूस्वामिचरित और वि. सं. १६४१ में लाटी संहिता रची गयी है। ५. अन्य टीकाएँ १. तत्वजयप्रकाशिनी-प्रस्तुत ज्ञानार्णवके अन्तर्गत जो त्रितत्त्व प्रकरण ( १९वा ) है उसमें प्रचुर लम्बे समासबाले गद्य भागके द्वारा शिव, वैनतेय (गरुड़) और काम इन तीन तत्त्वोंकी प्ररूपणा की गयी है। केवल इतने गद्य भागके ऊपर श्रुतसागर सूरिके द्वारा संस्कृतमें एक टीका लिखी गयी है । इस टीकाके आश्रयसे इन तत्त्वोंका कुछ स्पष्टीकरण हो जाता है। इस टीकाके अन्त में जो एक श्लोक (पृ. ३६८) उपलब्ध है उससे ज्ञात होता है कि प्रकृत टीका (भाष्य) आचार्य सिंहनन्दीकी प्रार्थनापर विद्यानन्दी गुरुके प्रसादसे श्रुतसागर सूरिके द्वारा की गयी है । १ उग्रायोतकवंशजो वरमतिर्गोत्रे च गर्गोऽभवत तत्पुत्रः पुनरद्भुतोदयगुणग्रामैकचूडामणिः श्रीपासांवरसाधु साधु गदितः सर्वै समं साधुभिः । रेखा यस्य विराजते धुरि तदारम्भे महौजस्विनां धर्मश्रीसुखदानमानयशसां जैनेऽथ धर्मे रतः ।।-जम्बूस्वामिचरित १, ६४-६५ तस्य भार्या यथा नाम्ना कौसुभी शोभनानना । साध्वी पतिव्रता चेयं भर्तृश्छंदानुगामिनी॥-जम्ब. च. १-७३ काष्ठासंघभद्यानियां (?) च नगरे कोलेति नाम्ना वरात् । श्रीसाधर्मदनाख्यया तदनुजो भ्राता स आसू सुधी स्तत्पुत्रो जिनधर्मशर्मनिरतः श्रीरूपचद्राह्वयः ।। ३. जम्बू. च. १, ७५-७७ । ४. महावीर जयन्ती स्मारिका अप्रैल १९६३, पृ. १०७-११ पर 'साहु और राजा टोडरमल' शीर्षक लेख। ५. जम्बू. च. १,६६-७२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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