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________________ २२० ज्ञानार्णवः [११.४२634 ) उन्मूलयत्यविश्रान्तं पूज्यं श्रीधर्मपादपम् । मनोभवमहादन्ती मनुष्याणां निरङ्कुशः ॥४२ 635 ) प्रकुप्यति नरः कामी बहुलं ब्रह्मचारिणे । जनाय जाग्रते चौरो रजन्यां संचरन्निव ॥४३ 636 ) स्नुषां श्वश्रू सुतां धात्री गुरुपत्नी तपस्विनीम् । तिरश्चीमपि कामातो नरः स्त्री भोक्तुमिच्छति ॥४४ 637 ) किं च कामशरवातजर्जरे मनसि स्थितिम् । निमेषमपि बध्नाति न विवेकसुधारसः ॥४५ 634 ) उन्मूलपति-मनोभवमहादन्तो । श्रीधर्मपादपं श्रीधर्मवृक्षम् । अविश्रान्तं निरन्तरम् उन्मूलयति । पुनः कोदृशम् । पूज्यम् । केषाम् । मनुष्याणाम् । कोदशः मनोभवमहादन्ती । निरङ्कशः अङ्कुशरहितः । इति सूत्रार्थः ॥४२॥ अथ कामो शोलवन्तं द्वेष्टितमाह ।। ___635 ) प्रकुप्यति-कामी नरः बहुलं ब्रह्मचारिणे प्रकुप्यति । क इव। चौर इव । यथा चौरः रजन्यां संचरन् जाग्रते जनाय प्रकुप्यति । इति सूत्रार्थः ॥४३॥ अथ कामी सर्वाः स्त्रीः कामयते। ___636 ) स्नुषां श्वश्रू-कामार्तो नरः स्नुषां वधूं, श्वश्रू, सुतां पुत्रों, धात्री मातृविशेषां, गुरुपत्नों, तपस्विनों, तिरश्चोमपि तिर्यस्त्रोमपि । इति सूत्रार्थः ।।४४॥ अथ मनोभववश्यतामाह । 637 ) किं च काम-विवेकसुधारसः मनसि स्थिति न बध्नाति । कीदृशे मनसि । कामशरवातजर्जरे कन्दर्पबाणसमूहजर्जरे । इति सूत्रार्थः ।।४५॥ अथ हरिहरादीनां संसर्गमाह । साधारणके लिए अतिशय कठिन प्रतीत होते हैं उनके करनेका भी कामी पुरुष साहस किया करता है। इसके लिए अंजनचोर आदिके अनेकों उदाहरण कथाग्रन्थोंमें देखे जाते हैं ॥४॥ कामदेवरूप मदोन्मत्त हाथी निरंकुश-नियन्त्रणसे रहित होकर निरन्तर मनुष्योंके पूजनीय व शोभायमान धर्मरूप वृक्षको उखाड़ा करता है ॥४२।। जिस प्रकार रातमें संचार करनेवाला चोर जागनेवाले मनुष्यके ऊपर कुपित होता है उसी प्रकार प्रायः कामी पुरुष ब्रह्मचारी मनुष्यके ऊपर कुपित होता है ॥४३॥ कामसे पीड़ित मनुष्य पुत्रवधू, सास, पुत्री, उपमाता ( माता भी), गुरुकी पत्नी, साध्वी और तिर्यचनी ( स्त्री पशु ) के भी भोगनेकी इच्छा करता है ॥४४॥ और भी-कामके बाणसमूहसे जर्जर (छेदयुक्त ) किये गये मनके भीतर विवेकरूप अमृतरस क्षणभर भी स्थितिको नहीं बाँधता है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार छेदोंसे १. M स्थितं, T स्थिते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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