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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.12 दशम आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के शासनकाल की कतिपय श्रमणियाँ (सं. 2052-वर्तमान ) आचार्य श्री तुलसी के उत्तराधिकारी आचार्य महाप्रज्ञजी वर्तमान में तेरापंथ संघ के दशम आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं। आचार्य महाप्रज्ञजी के व्यक्तित्व में प्रज्ञा और योग का अपूर्व समन्वय है, वे दार्शनिक हैं, कवि हैं, साहित्यकार हैं तथा प्रेक्षाध्यान पद्धति के विशिष्ट प्रयोक्ता हैं। आपके शासनकाल में संवत् 2052 से 63 तक कुल 120 श्रमणियाँ दीक्षित हुईं, वर्तमान संवत् 2063 की गणनानुसार 554 श्रमणियाँ एवं 116 समणियाँ कुल 670 श्रमणी-समणियाँ आपकी आज्ञा में विचरण कर रही हैं। आपके युग की प्रायः सभी श्रमणियाँ शिक्षित एवं बालब्रह्मचारिणी हैं, कई एम.ए., पी.एच.डी. हैं, कई श्रमणियों ने अपनी सृजनशील मेधा का उपयोग कर साहित्यिक क्षेत्र में काफी प्रगति की है। हमें कुछ ही श्रमणियों की अवदान-विषयक जानकारी उपलब्ध हुई है, शेष का परिचय तालिका में दिया है। 7.12.1 श्री लावण्यप्रभाजी (सं. 2052-वर्तमान) 10/1 आप आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा दीक्षित सर्वप्रथम श्रमणी हैं इससे पूर्व 619 दीक्षाएँ आचार्य श्री तुलसीजी के । मुखारविंद से हुईं, उसके पश्चात् उनकी सन्निधि में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने दीक्षाएँ प्रदान की। लावण्यप्रभाजी का जन्म चा र भजा रोड के राठौड गोत्र में पिता श्री राजमलजी के यहाँ हआ। आप आठ वर्षों तक पारमार्थिक शिक्षण संस्था में साधनाभ्यास एवं एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त कर सं. 2052 आषाढ़ शुक्ला 10 को लाडनूं में दीक्षित हुईं। आपके साथ 4 श्रमण एवं दो श्रमणियों ने भी दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् आप सतत साधना मार्ग पर अग्रसर हैं। 7.12.2 श्री उज्जवलप्रभाजी (सं. 2052-वर्तमान) 10/2 आपका जन्म लोणार के जोगड़ गोत्र में पिता श्री सुवालालजी के यहाँ संवत् 2025 में हुआ। सं. 2052 आषाढ़ शुक्ला 10 को गणाधिपति तुलसी की सन्निधि में आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा लाडनूं में आपने दीक्षा ग्रहण की। आगम, स्तोक एवं भाषा ज्ञान में विद्वत्ता अर्जित कर एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। आपने एम.ए. (प्राकृत) पाठ्यक्रम से जुड़े विषयों का तुलनात्मक अध्ययन पर शोध-निबंध भी लिखा, तथा कुछ लेख, कविता एवं गीतिकाएँ भी लिखीं। श्रमणी जीवन के पाँच वर्ष की स्वल्पावधि में 103 उपवास व छह बार 10 प्रत्याख्यान कर ज्ञान के साथ तप का आदर्श भी उपस्थित किया। आप चार वर्षों से शीतकाल में केवल एक पछेवड़ी ही ग्रहण करती हैं। 7.12.3 श्री अनुप्रेक्षाश्रीजी (सं. 2052-वर्तमान) 10/3 आप श्री उज्जवलप्रभाजी की अनुजा हैं, उन्हीं के साथ दीक्षित हुईं। आपने तीन सूत्र व कुछ स्तोक कंठस्थ किये। तप में 18 उपवास और दो बार दस प्रत्याख्यान किये। 20. (क) शासन-समुद्र भाग-25, पृ. 293-347. (ख) तेरापंथ-परिचायिका। (ग) पत्राचार द्वारा प्राप्त। 21. समग्र जैन चातुर्मास सूची, सितंबर 2004, भाग-2, पृ. 1-23. 871 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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