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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
एक-एक बार, पांच बार 30 उपवास एक बार 31, एक बार 34 की तपस्या की। इन तपस्याओं के अलावा दो बार पंचरंगी, बेले-बेले से दो वर्षीतप चौविहारी, सावन मास में पांच बार बेले-तेले तप, पांच बार तेले-तेले चार बार चोले-चोले, छह बार पंचोले-पंचोले बड़ा पखवासा एक कर्मचूर, एक से आठ आयंबिल की लड़ी की। संवत् 2048 में 70 वर्ष की उम्र में लघुसिंहनिष्क्रीड़ित की प्रथम परिपाटी पूर्ण की, पारणे के दूसरे दिन से ही चौविहारी अनशन तथा उसमें दीक्षा अंगीकार की, वह दिन था संवत् 2048 पौष कृष्णा 14, इनका चौविहारी अनशन 21 दिन चला। आप तारानगर निवासी भैरुदानजी बोथरा की सुपुत्री एवं राजगढ़ निवासी मदनचंदजी श्यामसुखा की धर्मपत्नी थीं। आपका स्वर्गवास संवत् 2048 पौष शुक्ला 4 को लाडनूं में हुआ।
7.11.109 श्री विश्रुतविभाजी 'लाडनूं' (सं. 2046-वर्तमान) 97602
आपका जन्म, संवत् 2014 को श्री जंवरीलालजी बरड़िया मोदी के यहां हुआ, संवत् 2037 में लाडनूं में समणी दीक्षा अंगीकार की, समणी स्मितप्रज्ञा के रूप में 12 वर्ष देश-विदेश में धर्मप्रचारार्थ यात्राएं की। आप प्रथम समणी नियोजिका के रूप में पौने छह वर्षों तक रहीं। 35 वर्ष की अवस्था में संवत् 2049 कार्तिक कृष्णा 7 को लाडनूं में श्रमणी दीक्षा अंगीकार की। आप विदुषी साध्वी है, संस्थान से एम.ए. करने के पश्चात् वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञजी की सन्निधि में आगम-सम्पादन के कार्य में संलग्न हैं। संघ प्रशासन में आचार्य श्री द्वारा 'मुख्य नियोजिका' पद भी आपको प्राप्त हुआ है। 7.11.110 श्री कमलविभाजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 2049-वर्तमान) 9/606
आप श्री हुकमचंदजी दूगड़ की सुपुत्री हैं। 22 वर्ष की उम्र में संवत् 2046 को लाडनूं में कमलप्रज्ञाजी के रूप में समणी दीक्षा अंगीकार की तथा संवत् 2049 कार्तिक कृष्णा 7 को लाडनूं में श्रमणी बनीं। आपने संस्थान से एम.ए. की परीक्षा दी, वर्तमान में शासनसेवा, ज्ञान, शिक्षण-प्रतिशिक्षण में संलग्न हैं। आप प्रतिवर्ष दस प्रत्याख्यान, श्रावण-भाद्रपद में एकांतर तप तथा दो महीने पांचों विगय का त्याग रखती हैं। 7.11.111 श्री दर्शनविभाजी 'मद्रास' (सं. 2049-वर्तमान) 9/607
आप मुनि श्री दुलहराजजी की दोहित्री हैं। संवत् 2020 को श्री सोहनलाल जी कांकरिया के घर आपने जन्म लिया। 27 वर्ष की अवस्था में संवत् 2047 को पाली में 'समणी-दीक्षा' अंगीकार की, संवत् 2049 कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन लाडनूं में आपकी 'श्रमणी दीक्षा' हुई। दीक्षा के पश्चात् आपने जैनदर्शन में एम.ए. किया। आप प्रतिवर्ष 30-35 उपवास व एक तेला करती हैं, एक बार आठ और नौ का तप भी किया।
7.11.112 श्री योगप्रभाजी 'गंगाशहर' (सं. 2051-वर्तमान) 9/618
आपके पिताश्री लूनकरणजी भंसाली हैं। 24 वर्ष की वय में श्री डूंगरगढ़ में संवत् 2045 में समणी दीक्षा अंगीकार की, उस समय आपका नाम योगक्षेम प्रज्ञाजी रखा, छह वर्ष समण-श्रेणी में रहने के पश्चात् कार्तिक कृष्णा 7 को नई दिल्ली में आपने 'श्रमणी-दीक्षा' ली। आपने जीवन-विज्ञान में एम.ए. किया तथा आचारांग सूत्र पर 200 पृष्ठों का शोध-निबंध भी लिखा।
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