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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ हैं, प्रतिदिन 5 या 6 विगय का त्याग तथा 12 वर्षों से दूध, चाय का त्याग है। प्रतिदिन 500 गाथाओं का स्वाध्याय, जाप व ध्यान भी करती हैं। 7.11.93 श्री रूपमालाजी 'गंगाशहर' (सं. 2043-वर्तमान) 9/552 ___आप श्री डूंगरगढ़ निवासी श्री मेघराजजी पुगलिया की सुपुत्री हैं, पति श्री मूलचंदजी सामसुखा थे, उनके स्वर्गवास के पश्चात् ज्येष्ठ शुक्ला 4 को लाडनूं में दीक्षा अंगीकार की। आपने दीक्षा से पूर्व व दीक्षा के पश्चात् कुल चार वर्षीतप, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान, 1 से 8 तक उपवास की लड़ी, 16 उपवास व 40 वर्षों से सावन मास में एकांतर, 7 घंटे दिन में चौविहार, 'तहत्' वचन के सिवा वर्षीतप में मौन आदि साधना की, तथा कई लाख जाप किये। 7.11.94 श्री श्रुतयशाजी 'लाडनूं' (सं. 2043-वर्तमान) 9/561 विशेष रूप से अध्ययन के क्षेत्र में तेरापंथ धर्मसंघ की आप प्रथम साध्वी हैं, जिन्होंने एम. ए. के पश्चात् 'नंदी में ज्ञान मीमांसा' विषय पर पी. एच. डी. होने का सौभाग्य प्राप्त किया। आप श्री जुगराजजी सेठिया की सुपुत्री हैं, संवत् 2043 कार्तिक शुक्ला 9 को लाडनूं में दीक्षा अंगीकार की। तब से आप सतत अध्ययन-अध्यापन में संलग्न हैं। 7.11.95 श्री मुदितयशाजी 'लाडनूं' (सं. 2043-वर्तमान) 9/563 आपका जन्म भूतोडिया गोत्रीय श्री विजयसिंहजी के यहां हुआ, 23 वर्ष की वय में सं. 2043 कार्तिक शुक्ला 3 को लाडनूं में दीक्षा ली, आप शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहीं। बी. ए. में राज्यस्तर पर (राजस्थान) 13वां स्थान प्राप्त किया। जैनदर्शन में एम.ए. कर लाडनूं से 'सन्मति तर्क एवं समीक्षात्मक अनुशीलन' पर पी.एच. डी. की। 'आगम अध्ययन' योजना में तथा 'आगम-संपादना' के कार्य में भी आप संलग्न हैं। समय-समय पर होने वाले सेमिनारों में शोध-निबंध लिखे। साप्ताहिक विज्ञप्ति में दैनिक प्रवचन का भी आप लेखन करती हैं। 7.11.96 श्री शुभ्रयशाजी 'बीदासर' (सं. 2043-वर्तमान) 9/565 ___ आप श्री हनुमानमलजी नाहटा की सुपुत्री हैं, 25 वर्ष की वय में, मृगशिर शुक्ला 12 को बीदासर में दीक्षा ग्रहण की। आप जीवन विज्ञान की प्रथम छात्रा रही, इसी में एम.ए. किया व 'आचारांगसूत्र' पर पी.एच.डी. की। 'आचारांग और महावीर' नाम से शोध प्रबंध ग्रंथ प्रकाशित है। समय-समय पर सेमिनारों में शोध निबंध लिखकर तथा आगम-संपादन में सहभागी बनकर जैन शासन के गौरव की अभिवृद्धि कर रही हैं। 7.11.97 श्री किरणयशाजी 'उदासर' (सं. 2044-44) 9/570 ____ आप श्री रूपचंदजी मुणोत की सुपुत्री हैं। दीक्षा के पूर्व ही आप पर दैविक उपसर्ग प्रारंभ हुआ, प्रण से डिगाने हेतु उसने इन्हें अंधा बना दिया, कई बार डरावने रूप दिखाये, धरती पर पटका, किंतु इन्होंने उतनी ही तप की आराधना की। साढ़े तीन वर्ष में कई बेले, तेले, चार, पांच, छह, सात, आठ किये, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, पंद्रह, इक्कीस व इक्यावन की तपस्या की। अंततः अनशन के 50वें दिन दीक्षा ग्रहण कर मात्र चार दिन का संयम पालकर 53 दिन 867 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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