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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ महाकवरजी भी दीक्षित हैं। दीक्षा के पश्चात् आपने विविध विषयों पर कई मुक्तक, गीत व लेख लिखे। सौ-सवा सौ तक अवधान के 51 बार प्रयोग करके आपने अपनी अद्भुत धारणा शक्ति का परिचय दिया। 7.11.42 श्री कमलश्रीजी 'टमकोर' (सं. 2009-वर्तमान) 9/263 आप श्री पन्नालालजी चोरड़िया टमकोर वालों की सुपुत्री हैं, संवत् 1991 में आपका जन्म हुआ। आप आचार्य महाप्रज्ञजी की चचेरी बहन हैं, कई वर्ष तक आपने गुरुकुलवास किया, वहां आगम, दर्शन, भाषा का गहन अध्ययन कर सरदारशहर में कार्तिक कृष्णा 9 को दीक्षित हुईं। आपने राजस्थानी व हिंदी भाषा में 50 के लगभग व्याख्यान रचे। संवत् 2028 से आप अग्रणी बनकर धर्म प्रभावना कर रही हैं। आप अत्यंत मिलनसार, गम्भीर एवं श्रमशील साधिका हैं। महासती केसरदेवी गौरव-ग्रंथ में आपका संस्कृत भाषा में रचित काव्य आपकी विद्वत्ता का प्रमाण है। प्रत्येक वर्ष 35 उपवास, एक बेला एक तेला करती हैं, चोला, पचोला व अठाई भी की है। 7.11.43 श्री जयश्रीजी 'राजलदेसर' (सं. 2009-वर्तमान) 9/266 आपके पिताश्री डालमचंदजी बांठिया हैं। आप भी कमलश्रीजी के साथ 16 वर्ष की अविवाहित वय में सरदारशहर में दीक्षित हुईं, अपनी सहज जन्मजात प्रतिभा के बल पर आपने शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी प्रगति की अभी तक आप दस-बारह शोध निबंध लिख चुकी हैं, साथ ही आशु कवियित्री भी हैं, आपने एक दिन में 700 से डेढ़ हजार पद्य तक नवीन राग रागनियों में बनायें। आप कला-कुशल, तपस्वी एवं कठोर संयमी हैं। आचार्य तुलसी ने कई बार आपकी विद्वत्ता का सम्मान किया। (1) प्रकृति के प्रांगण में, (2) फसल गीतों की, (3) प्यासा पनघट (कविता-संग्रह) ये तीन कृतियां आप द्वारा रचित हैं। सूक्ष्मलिपिकृत प्याले एवं प्रदर्शनी में रखने योग्य वस्तुएं भी आपने बनाई हैं। तपस्या के क्षेत्र में एक से 15 उपवास तक लड़ी कर चुकी हैं। मासखमण, दस प्रत्याख्यान 21 बार व कंठीतप भी किया। आपके उपवासों की कुल संख्या 1926 है। संवत् 2036 से आप सिंघाड़े की प्रमुखा बनकर दूरवर्ती प्रान्तों में धर्म का प्रसार कर रही हैं। 7.11.44 श्री दाखांजी 'नोहर' (सं. 2009-9) 9/269 अनशन में दीक्षा लेने वाली और दीक्षा में अनशन धारण कर सामायिक चारित्र में दिवंगत होने वाली तेरापंथ धर्मसंघ की यह महान तपस्विनी साधिका हुईं। चौविहारी अनशन के 10वें दिन माघ कृ. 7 को सरदारशहर में आपने आचार्य तुलसी से दीक्षा अंगीकार की, एवं 5 दिन श्रमणी जीवन में-ऐसे 15 दिन के संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। साध्वीश्रीजी के पिता श्री चुन्नीलालजी सिपाणी थे, संवत् 1939 में आपका जन्म हुआ। राजगढ़ निवासी श्री कुन्दनमलजी सुराणा की आप धर्मपत्नी थीं। 7.11.45 श्री विद्यावतीजी 'श्री डूंगरगढ़' (सं. 2009-वर्तमान) 9/272 आपका जन्म डूंगरगढ़ निवासी श्री भैंरुदानजी पुगलिया के यहां हुआ। आप 16 वर्ष की वय में आचार्य तुलसी से 'कालू' में फाल्गुन शुक्ला 6 को दीक्षित हुईं। इनकी दो बड़ी बहनें-श्रीगुणसुंदरीजी और महाकंवरजी भी दीक्षित हैं। आप शतावधानी साध्वी हैं, कला-प्रवीण हैं, सूक्ष्माक्षर लिपि-सौंदर्य, रजोहरण बांधना आदि कई कलाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आपने छोटे-बड़े 50 व्याख्यान, सैकड़ों गीतिकाएं, मुक्तक आदि रचे। तप Jain Education International For Private a personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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