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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास संस्कृत, प्राकृत, पाली, गुजराती व कन्नड़ भाषाओं की ज्ञाता हैं। आपने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें (1) साक्षात्कार, (2) हंसती- रोती फिल्मे, (3) एक और दो, (4) उम्मीद भरी सांसे ( कन्नड़ में भी अनूदित), (5) श्रुतयात्रा, (6) आयुष्मान, (7) अमृतबिंदु आदि पद्यात्मक पुस्तकें हैं। गद्य में वीर मृत्यु का नया नुस्खा, तथा विभिन्न आगमों पर लगभग 21 शोध - निबंध, प्रश्न व्याकरण सूत्र की संस्कृत छाया आदि कृतियां मुख्य हैं। 21 वर्षों तक प्रतिदिन 1000 गाथाओं का स्वाध्याय एवं 5 वर्ष शीतकाल में एक पछेवड़ी में रहकर आत्म कल्याण की साधना का सं. 2035 से अग्रणी बनकर पंजाब, असम, नेपाल तक की पद यात्राएं भी कीं । 7.11.39 साध्वी श्री राजीमतीजी 'रतनगढ़' (सं. 2007 - वर्तमान) 9 / 242 संवत् 1990 में श्री हुलासमलजी आंचलिया के यहां आपने जन्म लिया। आप तेरापंथ की अत्यंत विदुषी साध्वी हैं। आपने आचार्य तुलसी से हांसी (हरियाणा) में सं. 2007 कार्तिक कृष्णा 7 को दीक्षा ग्रहण की। शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में आपका अनूठा योगदान रहा है। आपकी सृजनशील मेधा ने कई ग्रंथ रत्नों को जन्म दिया पद्यमय कृतियां - ( 1 ) वंशाला चरित्र (2) चंद चरित्र, (3) रामायण, (4) चारूदत्त, ऋ प्रियंकर चारित्र, (6) कुमारपाल, (7) चिंता चरित्र, (8) बोधि प्राप्ति आदि । गद्य कृतियां - द्ध1 ऋ योग की प्रथम किरण, (2) ज्ञान किरण, (3) ज्योति किरण, (4) अमृत योग, (5) प्राचीन जैन साधना पद्धति, (6) योग से शान्ति की खोज, (7) नमस्कार महामंत्र, ( 8 ) साधना के आलोक में, (9) कैसे जीएं, (10) पथ और पथिक, ( 11 ) वन्दे अर्हम्, (12) दैनिक योग साधना, (13) पर्युषण साधना, ( 14 ) मुक्ति का द्वार, ( 15 ) संस्कार - प्रबोध (अंग्रेजी)। इसके अतिरिक्त लेश्या, योग, ईर्यापथ आदि कई शोध निबंध भी लिखे हैं। आप शिक्षा-साधना निकाय की व्यवस्थापिका भी रह चुकी हैं। आचार्य तुलसी जी ने आपकी शासननिष्ठा, अध्यात्मनिष्ठा और गुरु भक्ति का विशेष उल्लेख करते हुए "शासन गौरव अलंकरण" से अलंकृत किया। संवत् 2032 से सिंघाड़ाबद्ध रूप में आपने बिहार, बंगाल, असम आदि सुदूर क्षेत्रों की पद यात्रा की अब तक लगभग एक लाख किलोमीटर की यात्रा कर चुकी हैं। " 7.11.40 श्री रतनवतीजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 2008-21)9/256 आपका जन्म संवत् 1991 श्रीडूंगरगढ़ के छाजेड़ गोत्र में श्री चंदनमलजी के यहां हुआ। आप भरे-पूरे परिवार और वैभव को छोड़कर 17 वर्ष की सुहागिन अवस्था में माघ शु. 8 संवत् 2008 को सरदारशहर में आचार्य तुलसी जी द्वारा दीक्षित हुईं। आपको असातावेदनीय का प्रबल उदय रहा। संवत् 2021 ब्यावर चातुर्मास में आपने अनशन की भावना 7 दिन का उपवास किया उसके पश्चात् चौविहारी संथारा प्रारंभ किया जो 22 दिन चला। तेरापंथ धर्मसंघ में 22 दिन का यह चौविहारी अनशन अद्वितीय कीर्तिमान के रूप में उल्लिखित है। आपके जीवन से संबंधित 'रत्नरश्मि' नामक पुस्तक श्रीडूंगरगढ़ से प्रकाशित हुई है। 7.11.41 श्री गुणसुंदरीजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 2009-2057-60 के मध्य ) 9/257 आपने डूंगरगढ़ निवासी श्री भैरुदानजी पुगलिया के यहां संवत् 1982 को जन्म ग्रहण किया एवं दीक्षा सरदारशहर में कार्तिक कृ. 9 को आचार्य तुलसी जी के द्वारा हुई। आपकी दो बहनें - श्री विद्यावती जी व Jain Education International 856 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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