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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.11.26 श्री लिछमांजी 'शार्दूलपुर' (सं. 2001 - वर्तमान) 9/177 आप श्री नेतमलजी बोथरा के यहां संवत् 1986 में जन्मी । 15 वर्ष की वय में संवत् 2001 कार्तिक कृष्णा दशमी को सुजानगढ़ में दीक्षा ली। आपके संसारपक्ष से दो बहनें, मौसी, मामा, मौसी के बेटे आदि छः दीक्षाएँ हो चुकी हैं। आपने आगम व साहित्य का गहन अध्ययन कर निम्नलिखित कृतियां लिखी हैं- संगीत सरिता, विचार नीड़ (मुक्तक), महकते फूल, वीरसेन कुसुम श्री आदि 6 व्याख्यान, प्रगति की किरण ( 57 हिंदी लेख), संस्कृत - प्राकृत में छह निबंध । कला के क्षेत्र में सात सूक्ष्माक्षर पत्र, जिनमें गीता, दशवैकालिक, भक्तामर, वीरत्थुई आदि मुख्य हैं, लिखे । कल्प तथा चम्मच पर सूक्ष्म अक्षरों में जाल किया रामचरित्र, चंदराजा आदि बीस व्याख्यान व कई अन्य ग्रंथों की प्रतिलिपि की । हस्तकला प्रदर्शनी में आपके द्वारा सूक्ष्मलिपि में अंकित प्याले का एक लक्ष रुपये मूल्य आंका गया। इस प्रकार आपने जैन कला के गौरव में अभिवृद्धि की। संवत् 2022 से आप अग्रणी बनकर विचरण कर रही है। 7.11.27 श्री चांदकंवरजी 'सुजानगढ़' (सं. 2001-38) 9 / 178 आपका जन्म सं. 1987 श्री गणेशमलजी सिंधी के यहाँ हुआ, संवत् 2001 कार्तिक कृष्णा 10 को सुजानगढ़ में ही दीक्षा ग्रहण की। आपकी बहनें श्री मानकंवरजी व कलाश्रीजी भी शासन में दीक्षित हैं। आप सेवा, समर्पण, निर्भयता की प्रतिमूर्ति थीं । आगम गाथाओं के अतिरिक्त संस्कृत के सैकड़ों श्लोक आपको कंठस्थ थे। आपका प्रत्येक कार्य कलात्मक ढंग से होता था, सिलाई, रंगाई, मुखवस्त्रिका, रजोहरण प्रत्येक कार्य में दक्ष थीं। सेवा व तप में सदा आगे रहीं। आपने उपवास से 11 तक लड़ीबद्ध तपस्या की। 1072 उपवास व 54 बेले किये। संवत् 2038 में ब्रेन हेमरेज से डूंगरगढ़ में स्वर्ग प्रस्थान कर गईं। 7.11.28 श्री झमकूजी 'गंगाशहर' (सं. 2001-10) 9/183 आपका जन्म गंगाशहर के दूगड़ गोत्र में संवत् 1982 को श्री मन्नालालजी के यहां हुआ। आपने पति वियोग के पश्चात् 19 वर्ष की अवस्था में संवत् 2001 माघ शुक्ला 8 को आचार्य तुलसी द्वारा सुजानगढ़ में दीक्षा ग्रहण की। आपने नौ वर्षीय साधनाकाल में एक से नौ तक की तपस्याएँ कीं उसमें 495 उपवास और 22 बेले आदि भी किये। 14 घंटों के अनशन के साथ भुसावल में सं. 2010 को आप स्वर्ग की ओर प्रस्थित हुईं। कहा जाता है, दाह संस्कार के समय आपके सभी उपकरण जलकर भस्म हो गये, किंतु साधना अवस्था की मुख्य प्रतीक मुखवस्त्रिका प्रयत्न करने पर भी नहीं जली | 7.11.29 साध्वी श्री संघमित्राजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 2002 - वर्तमान) 9 / 190 आप डूंगरगढ़ के भंसाली श्री जेठमलजी की कन्या हैं, 15 वर्ष की वय में संवत् 2002 कार्तिक कृष्णा 9 को डूंगरगढ़ में ही आपने दीक्षा अंगीकार की। आप अत्यंत सुयोग्य एवं विदुषी साध्वी हैं, साध्वी- समुदाय के 'प्रवर्तन विभाग' की अग्रणी एवं प्रबंधनिकाय की व्यवस्थापिका भी रह चुकी हैं। आपका साहित्य जैन समाज में अत्यन्त आदर की दृष्टि से देखा जाता है। जैनधर्म के प्रभावक आचार्य, साक्षी है शब्दों की (पद्य) महान जैनाचार्य, वीरता की निशानियां, बूंद बन गई गंगा, दीर्घ तपस्विनी साध्वी श्री अणचांजी, निस्पृह Jain Education International 853 For Priersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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