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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास मासी व 1 से 25 तक लड़ी, कर्मचूर आदि तप कर चुकी हैं। आपके उपवास 3000, बेले 151, तेले 50 व चोले 51 की संख्या में हुए। आप कष्टसहिष्णु इतनी कि 54 वर्षों से एक पछेवड़ी के अलावा ग्रहण नहीं करतीं। ऐसी महान तपस्विनी साध्वियों से भारतीय-संस्कृति का मुख उज्जवल बन रहा है। 7.11.22 श्री भत्तूजी 'भीनासर' (सं. 2000-2032) 9/158 आपका जन्म बीकानेर निवासी शोभाचंदजी भंसाली के यहां सं. 1976 में हुआ, पतिवियोग के पश्चात् सं. 2000 कार्तिक शुक्ला 9 को गंगाशहर में आपकी दीक्षा हुई। आपका त्याग-वैराग्य उच्चकोटि का था। प्रतिदिन पोरसी, 15 द्रव्य के अलावा त्याग, यावज्जीवन औषधि त्याग, तीन विगय उपरांत त्याग, प्रतिवर्ष दो महीने एकांतर, उपवास से 11 तक लड़ीबद्ध तप आदि करके जिनशासन को चमकाया। आपने 2210 उपवास, 56 बेले, 20 तेले, 4 चोले, 25 पचोले, 27 बार दस प्रत्याख्यान आदि तप किया। सं. 2032 डीमापुर (नागालैण्ड) में आपका स्वर्गवास हुआ। 7.11.23 श्री कानकंवरजी 'राजलदेसर' (सं. 2000-वर्तमान) 9/163 आपका जन्म सं. 1985 कोड़ामलजी डागा के घर हुआ, 15 वर्ष की उम्र में सं. 2000 कार्तिक शुक्ला नवमी को दीक्षा ली। आप अत्यंत पुरुषार्थी हैं। 60 वर्ष की वय में सूत्रकृतांग तथा अवधान विद्या के प्रयोग करना आपकी अप्रमत्त वृत्ति का सूचक है। आपने सूरपाल, शीलवती के व्याख्यान व कई मुक्तक बनाये। आपके द्वारा निर्मित चित्रों के पन्ने, सुंदर कटिंग के पत्र, प्यालों पर नामांकन आदि दर्शनीय हैं। एक पन्ने में सूक्ष्मलिपि से बृहत्कल्प सूत्र लिखकर आचार्यश्री को भेंट किया। आप प्रतिदिन 1000 गाथाओं का स्वाध्याय भी करती हैं। आप आत्मबली, सेवाभावी विदुषी श्रमणी हैं। 7.11.24 श्री फूलकंवरजी 'लाडनूं' (सं. 2000-वर्तमान) 9/164 आप लाडनूं के बैंगानी श्री भूरामलजी की सुपुत्री हैं, 14 वर्ष की अविवाहित वय में 2000 कार्तिक शुक्ला नवमी को आपकी दीक्षा हुई। आप तत्त्ववेत्ता विदुषी अग्रगण्या साध्वी हैं। योगक्षेम वर्ष में प्रेक्षा प्रशिक्षिका के रूप में अपना योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में महावीर शतक, संकल्प सुधा, संस्कृत श्लोक व गीतिकाएं लिखी। तत्वज्ञान से संबंधित 21 शोध-निबंध लिखे, 25 व्याख्यान बनाये। मातुश्री छोगांजी का जीवन, रत्लरश्मि, नींव की ईंट, महल की मीनार, अभ्युदय की पगडंडियां आपकी ऐतिहासिक कृतियां हैं। कई वर्षों से निर्जरा के 12 प्रकारों की सलक्ष्य साधना में तल्लीन हैं। संवत् 2038 से आप अग्रणी होकर विचरण कर रही हैं। 7.11.25 श्री पानकंवरजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 2001-वर्तमान) 9/169 आप श्री संतोकचंदजी दूगड़ की सुपुत्री हैं, 15 वर्ष की अविवाहित वय में आप लाडनूं में संवत् 2001 आषाढ़ शुक्ला 2 को दीक्षित हुईं। आप आगम, स्तोत्र, हिंदी, संस्कृत आदि की ज्ञाता हैं, लगभग 15 हजार गाथाएं आपके कंठस्थ हैं। 'संघ सेविका साध्वी श्री छगनांजी' का जीवन लिखकर, तथा संवत् 2026 से अग्रणी के रूप में विचरण कर आप धर्म एवं शासन प्रभावना कर रही हैं। 852 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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