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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.11.18 श्री सोहनांजी 'छापर' (सं. 1998 - वर्तमान) 9 / 135 आपका जन्म सं. 1985 में तालछार के श्री झूमरमलजी बैद के यहां हुआ, राजलदेसर में कार्तिक कृष्णा नवमी को दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् सप्तवर्षीय परीक्षाएं देकर अपना आत्मिक विकास तो किया ही, साथ ही संस्कृत में श्लोक शतक, निबंधमाला (51 निबंध) कई व्याख्यान एवं अहिंसा आदि पर शोध निबंध लिखकर जन-समाज को सही दिशाबोध भी दिया। लगभग 51 ग्रंथों की प्रतिलिपि भी की। आपके अक्षर मोती जैसे सुंदर थे, इसके लिये आचार्य श्री द्वारा आप पुरस्कृत हुईं। अग्रणी बनकर दूर-दूर यात्रा की, एक साथ 102 व्यक्तियों को गुरुधारणा करवाकर आचार्य के दर्शनार्थ भिजवाया, कइयों को अणुव्रती और व्यसनमुक्त बनाया। आप सृजनशीला साध्वी हैं। आपने जैनतत्त्व दर्पण, स्मृति के झरोखे से (संस्मरण) आख्यान एवं गीतिकाएं लिखीं। आपने अग्रणी बनकर सं. 2010 से तमिलनाडू, केरल, गोवा, भूटान, सिक्कम, नेपाल, बंगाल, बिहार, असम, मेघालय, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक, आंध्रा आदि दूर-दूर की पदयात्रा कर जन-जीवन को धर्म के साथ जोड़ने का कार्य किया। आपकी प्रेरणा से संघ में सात-आठ बहिनों की वृद्धि हुई । 7.11.19 श्री कानकंवरजी 'चूरू' (सं. 1999 - वर्तमान) 9/146 आपका जन्म चूरू के सुराणा गोत्र में पिता माणकंचदजी के यहां सं. 1985 में हुआ। आपने अपनी छोटी बहन मानकंवर के साथ चूरू में सं. 1999 कार्तिक कृष्णा नवमी को दीक्षा ग्रहण कीं । आप आगम, स्तोत्र, संस्कृत भाषा आदि की जानकार हैं। अनेक ग्रंथों की आपने प्रतिलिपियां कीं । प्रतिदिन 1000 गाथाओं का स्वाध्याय करना आपका नियम है। आपने नेपाल तक की पद यात्रा की है। सं. 2057 तक आपने उपवास से अठाई तक (7 छोड़कर) लड़ीबद्ध तप किया, उपवास 1542 बेले 21 और तेले 13 किये, कई वर्षों तक लगातार दस प्रत्याख्यान किये, इस प्रकार आपका जीवन ज्ञान एवं तप का दिव्य संगम है। 7.11.20 श्री सूरजकंवरजी 'रतननगर' (सं. 1999 - वर्तमान) 9 / 150 आप हीरावत गोत्रीय श्री चम्पालालजी की सुपुत्री हैं। आपने 12 वर्ष की वय में चूरू में कार्तिक कृष्णा नवमी को दीक्षा ग्रहण की। आपको 5 आगम, संस्कृत नाममाला, कालूकौमुदी आदि कंठस्थ है। दो पुस्तक प्रमाण ग्रंथों की प्रतिलिपि, सूक्ष्माक्षरों में अंग्रेजी भाषा के 80,000 अक्षरों का निबंध एक पत्र पर जाल बनाकर लिखा, अन्य भी प्याले, ग्लास आदि पर सूक्ष्माक्षरों के जाल बनाये। 13 दिन में 6 पात्रों की रंगाई तथा दो दिन में नया रजोहरण बांधने का कार्य कर कला के क्षेत्र में अग्रणी रहीं । 7.11.21 श्री सोहनांजी 'राजलदेसर' (सं. 2000 - वर्तमान) 9/157 आपका जन्म सं. 1985 में श्री उदयचंदजी कुंडलिया के यहां हुआ, एवं दीक्षा सं. 2000 भाद्रपद शुक्ला 13 को गंगाशहर में हुई। आपने आचारांग भगवती, दशवैकालिक आदि 9 आगम कंठस्थ किये संस्कृत में सैकड़ों पद्यों की रचना की, एक दिन में 108 श्लोक बनाकर आपने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया। हिंदी में भी अनेक मुक्तक, कविताएं, गीतिकाएं बनाई। तप में भी आप पीछे नहीं रहीं। उपवास से 21 तक की तपस्याएँ, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान तीन बार 10 प्रत्याख्यान 100 बार, आयम्बिल तप भी चौमासी, दो मासी, अढ़ाई Jain Education International 851 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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