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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास श्री शीलवतीजी (सं. 2020 ) ये चारों आपके भतीजे-भतीजियां हैं। अपने परिवार को संयम मार्ग पर प्रेरित करने में आपका अनुदान स्पृहणीय है। आप महान तपस्विनी साधिका भी थीं। पांचसौ उपवास और 108 बेलों के साथ-साथ 15 तक लड़ीबद्ध तप करके आपने आत्म की अनंत शक्ति का परिचय दिया। शासन-समुद्र में आपके स्वर्गवास का उल्लेख नहीं होने से तथा तेरापंथ-परिचायिका में आपका नामोल्लेख न होने से आपके स्वर्गवास का समय सं. 1957 से 60 के मध्य कभी हुआ प्रतीत होता है। 7.11.14 श्री मालूजी 'चूरू' (सं. 1998-2052 ) 9/114 आप आचार्य प्रवर श्री महाप्रज्ञजी की ज्येष्ठा भगिनी थीं। आपका जन्म टमकोर ( राजस्थान) में पिता तोलारामजी के यहां एवं विवाह चूरू के 'बैद' परिवार में हुआ। पति वियोग के पश्चात् 30 वर्ष की उम्र में राजलदेसर में सं. 1998 कार्तिक कृष्णा 9 को दीक्षा ग्रहण की, उस समय 4 भाई और 23 बहनों की दीक्षाएँ हुईं, उनमें आप अग्रणी थीं। आप शांत, सरल और सहिष्णु वृत्ति वाली थीं। 20 वर्ष तक शीतऋतु में भी एक पछेवड़ी से अधिक ग्रहण नहीं किया। सं. 2013 से 2052 तक आप अग्रण्या बनकर जैनधर्म का प्रभाव फैलाती रहीं। आपके संपूर्ण गुण वाणी से नहीं जीवन से अभिव्यक्त होते थे। अपने जीवन में आपने कुल 1313 उपवास 31 बेले और 5 तेले किये। सं. 2052 लाडनूं में आप स्वर्गस्थ हुईं। 7.11.15 श्री कमलूजी 'उज्जैन' (सं. 1998-2046 ) 9/124 आपका जन्म उज्जैन के बैद मुंहता गोत्रीय श्री मुन्नालालजी के यहां सं. 1983 में हुआ । पूर्वोक्त 27 दीक्षाओं में आप भी सम्मिलित थीं। 16 वर्ष की वय में दीक्षित होकर आपने ज्ञान - ध्यान में खूब उन्नति की । आपने रामचरित्र, अग्निपरीक्षा, अंजनासती, धनजी चरित्र, हरिश्चन्द्र आदि रचनाएँ कर साहित्य की सेवा की, तथा अनेक आख्यान लिपिबद्ध किये। संवत् 2025 से 45 तक आप अग्रगण्या बनकर विचरीं। सं. 2046 बीकानेर आपका स्वर्गवास हुआ। 7.11.16 श्री कानकंवरजी 'सरदारशहर' (सं. 1998 - वर्तमान) 9 / 133 आपका जन्म सरदारशहर निवासी श्री बीजराजजी बोथरा के यहां सं. 1985 में हुआ। तथा राजलदेसर की 27 दीक्षाओं में आपने संयमी जीवन अंगीकार किया। आगम, स्तोक एवं अन्य ज्ञान के साथ-साथ आपने आचार्य तुलसीजी के प्रवचनों का तीन वर्ष तक संपादन, पंचसूत्र का अनुवादकुछ शोध निबंध व गीतिकाएँ भी लिखीं। आप शिक्षाकेन्द्र में अध्यापन कार्य भी कराती रहीं। संवत् 2018 से आप अग्रणी बनकर विचरण कर रही हैं। 7.11.17 श्री ज्ञानांजी 'शार्दूलपुर' (सं. 1998-2055) 9/134 आप शार्दूलपुर के श्री नेतमलजी बोथरा के यहाँ संवत् 1984 में जन्मीं, 14 वर्ष की वय में सं. 1998 कार्तिक कृष्णा नवमी को राजलदेसर में आपकी दीक्षा हुई। आप तेरापंथ संघ में विदुषी साध्वी के रूप में प्रख्यात हैं। आपने 'कल्पना के स्वर' एवं 51 लेख लिखे । सूक्ष्माक्षरों के पत्र रजोहरण, मुखवस्त्रिका, प्लास्टिक के चश्में आदि भी बनाये। सात वर्षों तक दो-दो महीने मौनवृत्ति 3 घंटा जाप ध्यान आदि करना आपकी दैनिक जीवन क्रियाएँ थीं। संवत् 2055 बीकानेर में तीन दिन के अनशन के साथ समाधिपूर्वक स्वर्ग प्रस्थान किया । Jain Education International 850 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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