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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.11.11 श्री रतनकंवरजी 'सरदारशहर' (सं. 1996-वर्तमान) 9/79 आपका जन्म संवत् 1982 में श्री सोहनलालजी छाजेड़ के यहां हुआ। सरदारशहर में 13 दीक्षाओं के साथ आप दीक्षित हुईं। दीक्षा लेकर अनुमानत: दस बारह हजार पद्य प्रमाण काव्य याद किये। संघीय परीक्षा में सात वर्ष का कोर्स तथा योग्यतम परीक्षा भी उत्तीर्ण की। आपके संस्कृत भाषा में निबंध, कहानी तथा अष्टक, षोडश आदि पद्य उपलब्ध हैं। शोध में पांच आगमों का शब्दकोश व अनुक्रमणिका तैयार की। मुखवस्त्रिका निर्मित करने, रजोहरण बनाने व संगीत प्रतियोगिता में आपने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। संवत् 2014 से आपका स्थायी संघाड़ा बन गया है। अपनी सहवर्तिनी साध्वियों के साथ आप धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। 7.11.12 श्री चंपाजी 'शार्दूलपुर' (सं. 1997-2056 ) 9/99 श्री सजनांजी 'देशनोक' (सं. 1998-2056) 9/115 श्री चम्पाजी का जन्म राजगढ़ के सामसुखा गोत्रीय श्री तिलोकचंदजी के यहां सं. 1974 में हुआ, तथा दीक्षा पतिवियोग के पश्चात् लाडनूं में हुई। श्री सजनांजी घमंडीरामजी चोपड़ा गंगाशहर निवासी की सुपुत्री तथा देशनोक के श्री सरदारमलजी भूरा की धर्मपत्नी थीं, राजलदेसर में सं. 1998 कार्तिक कृष्णा 9 को आप दीक्षित हुईं। आप दोनों का अंतिम संलेखना व अनशनव्रत विशेष रूप से चर्चित रहा। मृत्यु का वीरतापूर्वक वरण करने के लिये श्री चम्पाजी ने आषाढ़ कृ. 13 से तपस्या प्रारंभ की, आषाढ़ शु. 10 को उनके विशेष आग्रह पर साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी ने तिविहारी अनशन यावज्जीवन के लिये पचखा दिया। आपके अनशन एवं वर्धमान परिणामों को देख साध्वी सजनांजी ने भी आषाढ़ शु. 13 को संलेखना तप प्रारंभ कर दिया। 32 दिनों तक दोनों महान साध्वियों का दर्शन करने दूर-दूर से लोग उमड़ कर आये। कुल 47 दिन के अनशन द्वारा चम्पाजी का स्वर्गवास हुआ। संथारे में उनकी सहनशीलता व समता तथा उत्तरोत्तर चढ़ते परिणाम देखकर जैन-अजैन जनता में भगवान महावीर के धर्म के प्रति निष्ठा बढ़ी। श्री सजनांजी ने अपने तप अनशन के 49वें दिन संवत्सरी महापर्व से एक दिन पूर्व अपना केश-लुंचन भी करवाया, इस कष्टानुभूति को आत्मानुभूति के रूप में परिणत कर दृढ़ता का परिचय दिया। यह संथारा 77वें दिन संपूर्ण हुआ। तेरापंथ के इतिहास में संवत् 2056 तक इतना दीर्घ संथारा करने वाली श्री सजनांजी सर्वप्रथम साध्वी शिरोमणि हुई हैं। श्री चम्पाजी ने अपनी संयम पर्याय में उपवास से दस तक लड़ीबद्ध तपस्या की, उनके उपवासों की कुल संख्या 3338 है। श्री सजनांजी भी महान तपोसाधिका थीं, उन्होंने एक से आठ तक के उपवास लड़ीबद्ध किये, एक 11 का तप किया, सजनांजी के तप का आंकड़ा 2441 दिन का है, इन्होंने कर्मचूर आदि अन्य तपस्याएँ भी की थीं, इन दोनों महासतियों ने अपने तपोपूत जीवन से श्रमण-संस्कृति को महती गरिमा प्रदान की। 7.11.13 श्री कानकंवरजी 'लाडनूं' (सं. 1997-स्वर्गवास 1957 से 60 के मध्य) 9/105 आपका जन्म लाडनूं निवासी नेमीचंदजी बैद के यहां सं. 1983 में हुआ। आपने 14 वर्ष की वय में लाडनूं में 18 दीक्षाओं के मध्य सं. 1997 कार्तिक कृष्णा अष्टमी को दीक्षा अंगीकार की। आपके परिवार से 1 संत-मुनि जतनमलजी (सं. 2001) एवं तीन साध्वियाँ दीक्षित हुईं-श्री अंजनाजी (सं. 2013) श्री रविप्रभाजी (सं. 2019) 19. देखें शासन-समुद्र, भाग-21, पृ. 38 और 96. 849 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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