SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 910
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 7.11.7 श्री केशरजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 1995-2046) 9/39 आपका जन्म संवत् 1963 साहिबगंज (पाकिस्तान) निवासी श्री लिखमीचंदजी श्रीमाल के यहाँ हुआ था। पतिवियोग के पश्चात् अपनी पुत्री मालूजी के साथ आप सरदारशहर में दीक्षित हुई थीं। आपका तप व खाद्य संयम सराहनीय था, कई फुटकर तपस्याएँ एवं भोजन में 11 द्रव्य तथा अंत में 6 द्रव्य से अधिक न लेने का त्याग किया हुआ था। आपने तीन हजार पांचसौ पद्य कंठस्थ किये हुए थे। साढ़े पांच मास में लगभग 26 लाख 10 हजार गाथाओं का एकबार स्वाध्याय संपन्न किया। 24 वर्ष की अवस्था में लाडनूं में 13 दिन की संलेखना, एवं 40 दिन का अनशन कर चिन्तनपूर्वक मृत्यु-महोत्सव का वरण किया। संथारे के समय उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा आपके तपोमय जीवन को प्रत्यक्ष देखकर विस्मित हुए थे। 7.11.8 श्री केशरजी 'सरदारशहर' (सं. 1995-2057) 9/43 आपका जन्म संवत् 1978 में भूरामलजी बैद के यहां तथा विवाह पींचा परिवार में श्रीचंदजी से हुआ था। 12 वर्ष की लघुवय में एकदा बेर खाने की शौकीन केशरजी ने 'मती खाओ रे बेर जनम बिगड़े' गीतिका पढ़ी, और बेर में लटें भी देख आजीवन बेर व जमीकंद का त्याग कर दिया। 17 वर्ष की उम्र में पति, सास-ससुर सबको मनाकर सरदारशहर में दीक्षित हो गईं। इनके साथ 21 दीक्षाएँ और हुईं थीं। दीक्षा के पश्चात् आगम, स्तोक व हजारों पद्य कंठस्थ किये। रामचरित्र, हरिवंश, मुनिपत, चन्द्रसेन-चंद्रावती आदि व्याख्यान भी लिखे। आप विशेष तौर से मुखवस्त्रिका कलात्मक ढंग से बनाती थीं, तप व स्वाध्याय की साधना भी चलती थी। सं. 2009 से 2056 तक आप अग्रणी होकर विचरीं। सं. 2057 पड़िहारा में आपने समाधिमरण किया। आपके समर्पण, आत्मसाहस, कष्ट-सहिष्णुता, आज्ञाकारिता एवं आस्था के प्रसंग शासन-समुद्र भाग 20 में उल्लिखित हैं। 7.11.9 श्री सूरजकंवरजी 'सरदारशहर' (सं. 1995-वर्तमान) 9/51 आपने 11 वर्ष की उम्र में माता धन्नाजी के साथ 21 दीक्षाओं में अपना स्थान बनाया। दीक्षा के पश्चात् सूक्ष्माक्षरों के कई पन्ने प्यालों पर महीन अक्षरों का जाल, नारियल की टोपसियां आदि बनाकर आपने अपने कला-कौशल्य का परिचय दिया। साहित्य के क्षेत्र में 'साध्वी धन्नांजी का जीवन चरित्र', 'अपना चेहरा अपना दर्पण' पुस्तक लिखी। संवत् 2020 से आप अग्रगण्या रहकर धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। 7.11.10 श्री मालूजी 'श्रीडूंगरगढ़' (सं. 1995-2060) 9/52 आपका जन्म संवत् 1985 में श्री जेसराजजी छाजेड़ के यहां हुआ, संवत् 1995 कार्तिक शुक्ला 3 को सरदारशहर में आपकी दीक्षा हुई। आपने आगम ज्ञान, प्राकृत, संस्कृत के साथ संघीय सप्तवर्षीय परीक्षा उत्तीर्ण की। एकान्हिक श्लोक शतक, समस्यापूर्ति पंचक अष्टक, षोडश आदि लिखकर विदुषी साध्वियों में अपना नाम अंकित किया। सं. 2014 से आपने अग्रगण्या के रूप में विचरण कर धर्मप्रभावना की, अंत में 2060 पड़िहारा में 13 दिन के तप व चौविहार के साथ स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। 18. अनुश्रुति के आधार पर। 848 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy