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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ आचार्यों की माताएँ श्रमणी बनीं (i) मातुश्री साध्वी कुशालांजी (सं. 1857-67) आचार्य रायचंदजी की माता (ii) मातुश्री साध्वी कल्लूजी (सं. 1866-87) जयाचार्य की माता (iii) मातुश्री साध्वी वन्नांजी (सं. 1908-25) आचार्य मघवागणी की माता (iv) मातुश्री साध्वी जड़ावांजी (सं. 1920-48) आचार्य डालगणी की माता (v) मातुश्री साध्वी छोगांजी (सं. 1944-97) आचार्य कालूगणी की माता (vi) मातुश्री साध्वी वदनांजी (सं. 1994-2033) आचार्य तुलसीगणी की माता (vii) मातुश्री साध्वी बालूजी (सं. 1987-2078) आचार्य महाप्रज्ञजी की माता वदनांजी ने अपने समग्र जीवन को तप, संयम व साधना का पर्यायवाची बना लिया था, तप के क्षेत्र में आपने कुल उपवास 7735, बेले 325, तेले 32, चौले 17, पंचोले 7, छ 2, सात 2, आठ 3, नौ 3, दस 3, 11, 12, 13, 14, 15 व 16 का तप एक-एक बार किया। आपका दिन में तीन प्रहर भोजन त्याग एवं 15 द्रव्यों से अधिक का त्याग रहता था। आप घंटों जाप में लीन रहती थीं। आपकी निरभिमानता, सरलता अवसरज्ञता पर सभी मोहित थे। बीदासर में सं. 2033 माघ कृ. 14 को आपका स्वर्गवास हुआ, उस समय आपकी उम्र 97 वर्ष 4 मास की थी, जो तेरापंथ धर्मसंघ में कीर्तिमान के रूप में वर्णित है। आचार्य श्री तुलसी ने अपनी माता की स्मृति में 'मां वदनां' नामक कृति राजस्थानी भाषा में रची है। 7.11.5 श्री मानकंवरजी 'सुजानगढ़' (सं. 1994-2055) 9/32 आपने 14 वर्ष की वय में बीकानेर में दीक्षा ग्रहण की। आपमें सेवा का विशिष्ट गुण था, कहीं भी सेवा का कार्य हो, आप सदा तैयार रहती थीं, साथ ही प्रतिदिन 7 घंटे मौन, 700 गाथाओं का स्वाध्याय, तीन विगय के अतिरिक्त का त्याग रहता था, अंतिम समय 15 दिन की संलेखना 15 दिन तिविहारी अनशन और 15 दिन का चौविहारी अनशन कर बीदासर से स्वर्ग की ओर प्रयाण किया। 7.11.6 श्री भीखांजी “छापर' (सं. 1994-वर्तमान) 9/36 12 वर्ष की वय में 31 दीक्षाओं के साथ आपकी दीक्षा हुई। आगम, स्तोक व अन्य ज्ञानार्जन के साथ आपने कुछ व्याख्यान व गीतिकाओं का भी सर्जन किया। कई व्याख्यान सूक्ष्माक्षरों में लिखे। बारीक सिलाई और पात्र रंगाई में आप निपुण थीं, प्लास्टिक की कई कलात्मक चीजें चाकू, कतिया, खरड़, टिकटी, कानकुचरनी, दांतकुचरनी, नारियल व बेलिगरी के प्याले, जाली की माला, रजोहरण आदि निर्मित कर स्वावलम्बन की शिक्षा दी। सं. 2004 से आपने एक पछेवड़ी के अतिरिक्त त्याग, तीन विगय का त्याग, चाय आदि कई चीजों का त्याग किया हुआ है, आपकी सेवा एवं तपस्या भी प्रशंसनीय रही। 847 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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