________________
पूर्व पीठिका
आदि महारानियों का वर्णन आता है अध्यात्म तपस्तेज की प्रतिमूर्ति उन रानियों ने तप की ज्वाला में अपने समस्त कर्म समूह को भस्मीभूत कर दिया था। आज भी श्रमणियों का तपोमय उज्जवल.रूप जैसा जैन श्रमणियों में परिलक्षित होता है। वैसा विश्व इतिहास में अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। यही कारण है कि जैन साध्वी के लिये 'श्रमणी' का सार्थक संबोधन आगम-साहित्य एवं ग्रंथों में स्थान-स्थान पर प्राप्त होता है।103
1.14.2 श्रमणा
श्रमणी के लिये पाणिनी ने अष्टाध्यायी तथा शाकटायन ने अपने व्याकरण-ग्रंथ में 'श्रमणा' शब्द का भी प्रयोग किया है। जो कन्याएँ कुमारी अवस्था में ही दीक्षा अंगीकार कर लेती थीं उन्हें 'कुमारीश्रमणा' कहा गया है।04 श्रमणादि गण पाठ के अन्तर्गत 'कुमार प्रव्रजिता', 'कुमार तापसी' आदि शब्दों से यह सिद्ध होता है, कि उस समय प्रव्रज्या ग्रहण करने वाली कुमारिकाओं को 'श्रमणा' शब्द से संबोधित किया जाता था। आचार्य रविषेण ने भी पदमपुराण में श्रमणा' शब्द का प्रयोग किया है
"लब्वा बोधिमनुत्तमां शशिनखाऽप्याभिमामाश्रिता।
संशुद्ध श्रमणा व्रतोरूविधवा जाता नितान्तोत्कटा॥mos वाल्मिकीय-रामायण में भी शबरी के लिये श्रमणा संबोधन दिया है।06
कहीं-कहीं पर 'श्रमणा' को 'श्रवणा' शब्द से भी वर्णित किया है। अभिधान चिन्तामणि में भिक्षुकी स्त्री के 3 नामों में एक नाम 'श्रवणा' दिया है-'श्रवणा भिक्षुकी मुण्डा107
कुंदकुंदाचार्य ने श्रमण को 'सवण' (श्रवण) कहकर अभिहित किया है-"को वंदमि गुणहीणो ण हु सवणो णेव सावयो होई"108
1.14.3 अश्रमणा
__'श्रमणा' जब लोक-अलोक, श्रमण-अश्रमण, तापस-अतापस आदि भेदों से रहित परब्रह्म को प्राप्त करती है तब वह 'अश्रमणा' कही जाने लगती है। बृहदारण्यक में यही बात कही है
'श्रमणोऽश्रमणस्तापसोऽतापसो नन्वागतं पुण्येतानन्वागतं पापेन
तीणो' हि तदा सर्वान् शोकान् हृदयस्य भवति। 109
103. (क) श्रीमती श्रमणी पावें बभूवुः परमार्यिकाः - पद्मपुराण आ. रविषेणकृत, पर्व 119/42,
(ख) 'पद्माख्या श्रमणीमुख्या विश्राण्य श्रमणीपदम्।' -श्री वादीभसिंहसूरि कृत क्षत्रचूडामणि 11/16 104. 'कुमारी श्रमणा कुमारश्रमण' - शाकटायन व्याकरणम् 2/1/78 की वृत्ति, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, सन् 1977 105. प. पु. पर्व 78 श्लोक 95 106. वा. रा. 1/1/56 107. श्रवणायां भिक्षुकी स्यात्-काण्ड 1, गा. 196, पं. श्री हरगोविन्दशास्त्री, चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी 108. दर्शनपाहुड, 27 109. बृहदारण्यक 4/3/22
29
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org