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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कृष्णा नवमी को दीक्षा ग्रहण की। 21 वर्ष तक गुरुकुलवास में रहकर आपने विशेष रूप से हिंदी, संस्कृत, प्राकृत आदि अध्ययन किया, तथा अपनी लेखनी से उन्हें सृजनात्मक स्वरूप भी प्रदान किया। आपने चंदचरित्र, जिनसेन-रामसेन चरित्र, ऋषिदत्त चरित्र, भीमसेन चरित्र, हरिसेन चरित्र, विद्या विकास चरित्र आदि पद्यमय काव्य कृतियां निर्मित की। संस्कृत में भक्तामर की समस्यापूर्ति, धर्म षोडश, कर्त्तव्य-अष्टक आदि बनाये। हिंदी में भी कई कविताएं, मुक्तक, गीतिकाएं आदि तैयार की। विशेष रूप से साध्वी समाज में 'शतावधान' का द्वार उद्घाटित करने वाली आप सर्वप्रथम विदुषी साध्वी थीं। दक्षिण प्रान्त की ओर पदयात्रा करने और काठमांडू (नेपाल) में सर्वप्रथम गमन करने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त हुआ, आचार्य श्री द्वारा आप शिक्षा केन्द्र की व्यवस्थापिका तथा व्यवस्था विभाग की व्यवस्थापिका के रूप में भी नियुक्त हुई थीं। 7.10.54 श्री सुजाणांजी 'मोमासर' (सं. 1990-2042) 8/218 श्री सुजाणांजी का जन्म राजलदेसर के बैद परिवार में सं. 1966 को हुआ, तथा विवाह मोमासर के नाहटा परिवार में हुआ। बचपन से ही त्याग-वृत्ति के मार्ग पर आरूढ़ सुजाणांजी वैधव्य के पश्चात् अपनी पुत्री इन्द्रू को लेकर श्रमणी-संघ में प्रविष्ट हुई। साधना के विविध उपक्रमों का रसास्वादन करती हुई साध्वीश्री ने तप की लड़ियां प्रारंभ की। उपवास से 15 तक लड़ीबद्ध तप उन्होंने एकाधिक बार किया। उनके समग्र जीवन के 19 वर्ष 4 मास और 11 दिन तप में व्यतीत हुए, अंत में 11 दिन की संलेखना संथारा के साथ सं. 2042 में गंगापुर में स्वर्गस्थ हुईं। 7.10.55 श्री मीरांजी 'सरदारशहर' (सं. 1991-2036) 8/224 श्री मीरांजी का जन्म संवत् 1957 सरदारशहर के श्री कुंभकरणजी पुगलिया के यहाँ तथा विवाह वहीं पर गा से हुआ। विवाह के दो मास पश्चात् ही सुहाग का चिन्ह समाप्त हो जाने पर मीरांजी ने पदार्थ की आसक्ति को ही मन से निकाल फैंका और अपने जीवन को सत्संग, दर्शन, स्वाध्याय व तप से संलग्न कर दिया। आपने एक से 16 तक लड़ीबद्ध तप भी किया। अन्तर्हदय में छलछलाते वैराग्य के परिणामों से 34 वर्ष की वय में जोधपुर में कार्तिक कृष्णा अष्टमी को दीक्षा लेकर आप श्रमणी बनीं। तप की धारा यहाँ भी अविश्रान्त गति से प्रवाहित होती रही, 1 से 8 तक की तपस्या एकाधिक बार कर कुल 1292 दिन उपवास में तथा आयंबिल से कर्मचूर, मासखमण, दो मास, चार मास, छह मास व तेरह मास तप कर 1207 दिन के आयंबिल का कीर्तिमान स्थापित किया। तप के साथ अनवरत स्वाध्याय, ध्यान, जाप एवं मौन भी चालू रखा। सं. 2036 में अपना अंतिम समय निकट जानकर आपने 22 दिन का तप और 31 दिन का तिविहारी अनशन, कुल 53 दिन की संलेखना संथारे के साथ 'लाडनूं' में अपना कार्य सिद्ध किया। 7.10.56 श्री भत्तूजी 'सरदारशहर' (सं. 1992-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/243 श्री भत्तूजी का जन्म सरदारशहर के श्री नानूरामजी दफ्तरी के यहाँ संवत् 1969 में हुआ तथा विवाह श्री जयचंदलालजी गधैया के साथ हुआ। 23 वर्ष की सुहागिन अवस्था में आपने पति तथा नववर्षीय पुत्र को छोड़कर उदयपुर में कार्तिक कृष्णा पंचमी के दिन दीक्षा ली। दीक्षा के पश्चात् आप स्वाध्याय और तप में उत्तरोत्तर वृद्धि करती रही। एक से नौ तक के उपवास एकाधिक बार किये, आछ के आधार पर छहमासी, साढ़े चारमासी, तीनमासी, डेढ़मासी आदि तप तथा आयंबिल से लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की प्रथम परिपाटी, तीन बार मासखमण आदि किया, 844 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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