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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
इसके अलावा कंठीतप, धर्मचक्र, धर्मचक्रवाल, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान किये। तप के प्रभाव से अपनी 18 वर्षों से चली आती हिस्टीरिया की बीमारी भी आपने दूर की। 7.11 नवम आचार्य श्री तुलसी गणाधिपति के काल की प्रमुख श्रमणियाँ ० (सं. 1993-2054)
अणुव्रत प्रवर्तक, युगप्रधान नवमाधिशास्ता के रूप में लोकप्रिय आचार्य श्री तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के शिखर पुरुष थे। संवत् 1993 भाद्रपद शुक्ला षष्ठी को 22 वर्ष की अल्पवय में वे आचार्य पद पर आसीन हुए और सर्वप्रथम श्रमणी-समुदाय की चतुर्मुखी प्रगति हेतु शिक्षाकेन्द्र, कलाकेन्द्र, परीक्षाकेन्द्र खोले, फलस्वरूप साध्वियों ने शिक्षा के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किये। आज इस संघ में अनेक विदुषी साध्वियाँ हैं, उनमें प्रभावक प्रवचनकार, संगीतकार, साहित्यकार, तत्त्वज्ञा, विविध दर्शनों की मर्मज्ञा, संस्कृत-प्राकृत आदि भाषाओं की विशेषज्ञा साध्वियाँ हैं। तुलसी युग में साध्वी समाज ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां अर्जित की हैं। वर्तमान में तेरापंथ का साध्वी समाज उच्चस्तरीय शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन में, साहित्य सृजन में, आगम-शोध के महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रवृत्त हैं। तप-साधना में भी पूर्वाचार्यों की अपेक्षा आचार्य तुलसी के युग की साध्वियाँ आगे रही हैं, भद्रोतर तप, लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप, 180 दिन का निर्जल तप, आछ प्रयोग पर छहमासी, नवमासी, बारहमासी तप, छाछ के आगार पर 462 दिन का तप, महाभद्रोतर तप आदि विविध एवं विस्तृत तप की कड़ी इस युग की अद्वितीय देन रही है। __आचार्य तुलसी के युग में साधु-साध्वियों की पद-यात्रा का भी कीर्तिमान बना है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम, सिक्किम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, तमिलनाडु, कन्याकुमारी, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर आदि प्रायः सभी प्रान्तों में तथा भारत से बाहर भूटान, नेपाल में भी साध्वियाँ पहुंच कर धर्म प्रचार का महान कार्य करती हैं। समण-श्रेणी की स्थापना करके आचार्य तुलसी ने धर्म प्रभावना को जो व्यापक रूप प्रदान किया, वह वस्तुतः स्तुत्य है, जहां साधु-साध्वी नहीं पहुंच पाते वहां समणे-समणी वर्ग पहुंचकर महावीर के संदेशों को विदेशों तक पहुंचाने का अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं। आचार्य श्री तुलसी का शासनकाल अन्य आचार्यों की अपेक्षा दीर्घजीवी भी रहा, सं. 1993 से 2054 तक धर्मसंघ को अपना सुखद व स्वस्थ संरक्षण देकर, 83 वर्ष की आयु में गंगाशहर में चिरसमाधिस्थ हुए। आचार्य श्री तुलसी ने 61 वर्ष की सुदीर्घ अवधि में 268 श्रमण 643 श्रमणियाँ, 11 सभण तथा 117 समणियों को दीक्षा प्रदान की। इनमें 7 समण व 34 समणियों की मुनि दीक्षा हो गई है। दीक्षित श्रमणियों का जीवन-वृत्त एवं विशेष संदर्भ मुनि श्री नवरत्नमलजी ने शासन-समुद्र भाग 20 से 25 में विस्तृत रुप से संजोये हैं, हम संक्षेप में उन श्रमणियों की विशिष्ट अर्हताओं एवं उसमें उल्लिखित सं. 2057 तक के विशिष्ट अवदानों की ओर ही दृष्टिक्षेप करेंगे।
7.11.1 श्री गौरांजी 'राजगढ़' (सं. 1993-वर्तमान") 9/9
आप श्री सम्पतरामजी नाहटा की कन्या हैं। आपने 15 वर्ष की वय में दीक्षा ली। दीक्षा के पश्चात् दशवैकालिक सूत्र एवं हजारों पद्य कंठस्थ किये। प्रवचन शैली भी सुंदर है। विशेष रूप से आपने 100 से अधिक उद्बोधक चित्र बनाये, 20-25 हजार प्रमाण पद्यों की प्रतिलिपि की। रजोहरण, टोपसियां आदि अनेक वस्तुओं का 16. शासन-समुद्र, भाग-20-25. 17. यह समय 'तेरापंथ परिचायिका' प्रकाशन वि. सं. 2060 के आधार पर है।
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