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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ उनकी दीक्षा सरदारशहर में माघ शुक्ला 10 को हुई। उनके जीवन-प्रसंगों पर लिखी गई “विदेह की साधिका साध्वी श्री बालूजी' पुस्तक प्रकाशित हुई है। 7.10.49 श्री पिस्तांजी 'जमालपुर' (सं. 1987-2037) 8/187 हरियाणा के अग्रवाल कुल में उत्पन्न हुई बाला पिस्तां 15 वर्ष की वय में सरदारशहर में माघ शुक्ला दसमी को दीक्षित होकर साध्वी बनीं। सरलभाव से तप स्वाध्याय से 50 वर्ष तक संयम का रसास्वादन कर अंत में 22 दिन के चौविहारी संथारे के साथ मृत्यु का वरण कर अपना संयमी जीवन तो सफल किया ही साथ ही तेरापंथ संघ में भी अपूर्व कीर्तिमान कायम कर शासन की गरिमा को अभिवृद्धिंगत करने का भी यशस्वी कार्य किया। 7.10.50 श्री रायकंवरजी 'राजलदेसर' (सं. 1988-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य ) 8/203 आपका जन्म श्री कोडामलजी डागा के यहाँ सं. 1976 में हुआ। आपने 13 वर्ष की वय में राजगढ़ में ज्येष्ठ कृष्णा तृतीया को दीक्षा अंगीकार की। निरंतर अभ्यास करते हुए आपने 20-25 हजार पद्य, 5 शास्त्र, कई स्तोक याद किये। आपने अपनी मधुरवाणी और प्रेरक उपदेशों द्वारा हजारों व्यक्तियों को समझाकर व्यसनमुक्त किया, अणुव्रती तैयार किये, हजारों को सुलभ बोधि और सम्यक्त्व दीक्षा दी, कई स्थानों पर सामाजिक मतभेद दूर किये। उड़ीसा के महाराज एवं महाराव तक अणुव्रत के संदेश को पहुंचाया, सार्वजनिक प्रवचन भी किये, इस प्रकार आपने शासन की बड़ी प्रभावना की। 7.10.51 श्री पारवतांजी 'लाडनूं' (सं. 1989-2033) 8/204 आपका पीहर नागौर जिले के 'अलाय' नामक कस्बे में था। पिता का नाम श्री मेघराजजी चोरडिया तथा पति का नाम आसकरणजी बोथरा था। पति के स्वर्गवास के पश्चात् आपने 5 वर्षीय पुत्र का मोह छोड़कर दस वर्षीय कन्या किस्तूरांजी के साथ कार्तिक कृष्णा नवमी को सरदारशहर में दीक्षा ली। स्वाध्याय, मौन, जप, तप, समता व समाधि की साधना से धर्मसंघ के प्रभाव को बढ़ाती हुई आप 44 वर्षों तक शासन की सेवा करती रहीं, 73 वर्ष की उम्र में 25 दिन की संलेखना और 29 दिन का तिविहारी अनशन करके शाहपुर में आप स्वर्गस्थ हुईं। आपने संयमी जीवन में 1665 उपवास एवं 1 से 9 तक लड़ी की, प्रतिवर्ष दस प्रत्याख्यान किये, आपके कुल उपवास के 1948 दिन थे। 7.10.52 श्री लिछमांजी 'सिरसा' (सं. 1989-स्वर्ग. 2042-60 के मध्य) 8/207 आपका जन्म अली मोहम्मद गांव में सं. 1967 में श्री हनूतमलजी के यहां हुआ तथा विवाह श्री डेडराजजी पारख से हुआ। पतिवियोग के बाद आपने सरदारशहर में कार्तिक कृष्णा नवमी को दीक्षा अंगीकार की। और कालि आदि रानियों के तप का स्मरण कराती हुई तप में लीन बन गईं। आपने उपवास से 23 तक लड़ीबद्ध तप तथा 28 से 31 तक का तप भी किया, आपके तपोपूत जीवन के कुल दिवस 4814 हैं। ___7.10.53 श्री किस्तूरांजी 'लाडनूं' (सं. 1989-स्वर्ग. 2042-60 के मध्य) 8/211 आपके पिता श्री आसकरणजी बोथरा थे, आपने अपनी माता पारवतांजी के साथ सरदारशहर में कार्तिक | 843|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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