________________
तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
7.10.34 श्री कमलूजी 'राजलदेसर' (सं. 1981-2018) 8/115
आपका जन्म सं. 1962 को कलकत्ता में चूरू निवासी मोतीलालजी सुराणा के यहां हुआ, तथा विवाह सुराणा परिवार में हुआ। पतिवियोग के पश्चात् संवत् 1981 कार्तिक कृष्णा 5 के दिन चूरू में दीक्षा ग्रहण की। आप साहसी, फक्कड़ स्पष्टवादी और सहनशील थीं, संवत् 1990 से अग्रणी रहकर आपने काफी धर्म प्रचार किया, सं. 2019 सुजानगढ़ में आपने स्वर्ग-गमन किया। मुनि छत्रमलजी ने साध्वीश्री की संक्षिप्त जीवन झांकी 88 पद्यों में तथा श्री भीखांजी ने 'कमलू बन गई कमला' पुस्तक में दी है।
7.10.35 श्री जड़ावांजी 'गंगाशहर' (सं. 1981-2030) 8/119
आपका जन्म सं. 1949 को उदासर निवासी भैंरुदानजी चोरडिया के यहां हुआ। पतिवियोग के पश्चात् सं. 1981 माघ शुक्ला 14 को सरदारशहर में संयम ग्रहण किया। आप उग्रतपस्विनी साध्वी हुईं, उपवास 5003, बेले 588, तेले 59, चोले 39, पचोले 12, छ, सात और नौ का तप 4 बार, अठाई 5, 10, 11 और 15 का तप एकबार किया। अंत में 21 दिन के संलेखना व अनशन के साथ संवत् 2030 को लाडनूं में पंडित मरणप्राप्त किया।
7.10.36 श्री सुंदरजी 'मोमासर' (सं. 1981-2041) 8/120
आप बंगाल प्रान्त के नलफामारी ग्राम के श्री हरखचंदजी दूगड़ की सुपुत्री थीं। 20 वर्ष की अवस्था में पतिवियोग के पश्चात् सरदारशहर में आपकी दीक्षा माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुई। आपने अपनी प्रखर प्रज्ञा एवं प्रबल पुरुषार्थ से लगभग 21 हजार गाथाएँ कंठस्थ की थीं। संवत् 2009 से आपने अग्रणी के रूप में अनेक क्षेत्रों में धर्म का प्रचार-प्रसार किया। साथ में उग्र तपस्याएँ भी की, उसका विवरण इस प्रकार है-उपवास 6111, बेले 1161, तेले 159, चोले 44, पचोले 36, छह, आठ, ग्यारह 3 बार, सात, नौ का तप 2 बार, शेष 17 तक की लड़ी एकबार की। आप प्रतिदिन एक हजार गाथाओं का स्वाध्याय करती थीं, तथा अन्य अनेक नियम धारण किये हुए थे। अंत में संवत् 2041 को चाड़वास में दो दिन की तपस्या के साथ समाधिमरण को प्राप्त हुईं।
7.10.37 श्री किस्तुरांजी 'गंगाशहर' (सं. 1981-2031) 8/122
आपका जन्म संवत् 1961 में गंगाशहर के भैंरुदानजी छाजेड़ के यहां हुआ, वहीं दूगड़ परिवार में आपका ससुराल भी था, किंतु तीन वर्ष में ही पतिवियोग हो जाने पर माघ शुक्ला 14 को सरदारशहर में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपके पचास वर्ष की संयम-पर्याय में प्रायः एक भाग तप से परिपूर्ण रहा, आपके तप का विवरण इस प्रकार है-उपवास 4963, बेले 201, तेले 22, चोले 11, पचोले 16, छह 2, अठाई 4, पन्द्रह 2 शेष सात से 31 तक क्रमबद्ध तपस्या (20, 24-26 को छोड़कर) एक बार । अंत में आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को तपस्या प्रारंभ की, संवत्सरी के दूसरे दिन 50 दिन की दीर्घ तपस्या के साथ 'तोषाम' में स्वर्गवासिनी हुईं।
7.10.38 श्री झमकूजी 'राजलदेसर' (सं. 1982-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/133
आपका जन्म चूरू के सुजानमलजी सुराणा के यहाँ संवत् 1964 में हुआ, नाहर परिवार में आपका संबंध किया गया, वैराग्य का प्रबल उदय होने पर सुहागिन वय में संवत् 1982 कार्तिक शुक्ला 5 को आपने बीदासर में दीक्षा ग्रहण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org