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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 7.10.29 श्री जतनकंवरजी 'राजगढ़' (सं. 1979-स्वर्ग. सं. 2043.60 के मध्य) 8/103 __ आप श्री बालचंदजी पुगलिया की सुपुत्री थीं, 14 वर्ष की अविवाहित वय में भाद्रपद शुक्ला 10 को बीकानेर में दीक्षा अंगीकार की। आपने 4 आगम, कई स्तोक, व्याख्यान आदि कंठस्थ किये। संवत् 1995 से अग्रणी के रूप में विचरण कर खूब धर्म की प्रभावना की, स्वयं प्रतिदिन एक हजार गाथाओं का स्वाध्याय करती तथा तीन विगय से अधिक ग्रहण नहीं करती थीं, आपकी तप संख्या 2072 थी, आप शल्य चिकित्सक भी थीं, श्री हलासांजी के पीठ की गांठ का ऑपरेशन किया था। आपके स्वर्गवास की निश्चित तिथि ज्ञात नहीं हो सकी। 7.10.31 श्री दीपांजी 'सिरसा' (सं. 1979-2029) 8/105 आप पंजाब के सिरसा शहर में सं. 1969 को श्री केवलचंदजी नवलखा के यहां अवतरित हुईं। आपने दस वर्ष की लघुवय में भाई धनराजजी और चंदनमलजी के साथ सं. 1979 प्रथम ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा के दिन सुजानगढ़ में दीक्षा ली, आपके पिता श्री केवलचंदजी बाद में दीक्षित हुए थे। आपने अपनी तीक्ष्ण मेधा शक्ति से आगम, व्याकरण, काव्य, ग्रंथ, कोष, स्तोक, कई व्याख्यान आदि कंठस्थ किये। सं. 1998 से अग्रणी के रूप में विचरण करते हुए आपने जन-जन में धर्म के मौलिक तत्त्व व संस्कार भरने के अच्छे प्रयत्न किये। आप साहसी, धैर्यवान, वाक् कुशल तथा निष्ठावान साध्वी थीं अपने संयमी जीवन में उपवास से आठ तक लड़ीबद्ध तपस्या तथा 25 बार दस प्रत्याख्यान किया। सं. 2029 को अबोहर में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके प्रेरक संस्मरण साध्वी श्री सुमंगलाजी ने 'ये दीप सदा जलते रहेंगे' पुस्तक में दिये हैं। 7.10.32 श्री मनसुखांजी 'मोमासर' (सं. 1980-स्वर्ग सं. 2042-60 के मध्य) 8/107 ___ आपका जन्म संवत् 1962 सुजानगढ़ में श्री सूरजमलजी भूतोड़िया के यहां हुआ, तथा विवाह श्री पांचीरामजी पटावरी के साथ किया गया। आपने 18 वर्ष की वय में अपने पति के साथ जयपुर में कार्तिक कृष्णा 7 को दीक्षा अंगीकार की। आपने सूत्र, स्तोक, व्याख्यान आदि की लगभग 15 हजार गाथाएँ कंठस्थ की। सं. 2042 तक आपने 1792 उपवास, 110 बेले और 7 चोले, 110 आयंबिल किये। सं. 2039 से आडसर में स्थिरवासिनी थीं, वहीं आपका सं. 2042 से 60 के मध्य स्वर्गवास हुआ। 7.10.33 श्री संतोकांजी 'चूरू' (सं. 1981-2014) 8/114 आपका ससुराल पारख गोत्र में और पीहर राजगढ़ के नाहटा गोत्र में था। सं. 1960 में आपका जन्म श्री हीरालालजी के यहां हुआ। पतिवियोग के पश्चात् सं. 1981 कार्तिक शुक्ला 5 को चूरू में दीक्षा स्वीकार की। आप तपस्विनी थीं, सेलड़ी की वस्तु, औषध सेवन तथा पांच विगय का क्रमशः आजीवन त्याग कर दिया था, तीस वर्ष तक दो महीने के एकांतर, छब्बीस वर्षों तक दस प्रत्याख्यान तथा तीन वर्ष बेले-बेले तप किया। आपके तप के कुल दिन 4237 होते हैं इसमें आठ, ग्यारह और बारह की बड़ी तपस्या भी सम्मिलित है। संवत् 2014 को सुजानगढ़ में 20 दिन के चौविहारी अनशन के साथ दिवंगत हुई। 15. दृ. तेरापंथ परिचायिका, पृ. 17. 838 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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