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________________ 7.10.6 श्री हुलासांजी 'सिरसा' (सं. 1968-2037 ) 8/34 आपने साढ़े 13 वर्ष की वय में सगाई को छोड़कर वैराग्य भाव से अपने बड़े पिता गणपतरामजी पुगलिया व बड़ी माता मौलांजी के साथ बीदासर में दीक्षा अंगीकार की, उस दिन छह दीक्षाएँ हुई। आपकी वाणी मधुर आवाज बुलन्द और व्याख्यान शैली आकर्षक थी, आपको 'हुलासी रूप की डली बखाण की कली' कहकर साध्वी प्रमुखा सम्मान देती थीं। आपके अग्रणी रूप में 50 चातुर्मास हुए। साधना जीवन को आपने तप के द्वारा निखारा। आपने 3007 उपवास, 649 बेले, 82 तेले, 21 चौले, 19 पांच, छह, आठ, दस प्रत्याख्यान (15 बार ) अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान, साढ़े तीन वर्ष बेले- बेले तप उसमें चातुर्मास में तेले-तेले आदि विविध तपस्याएँ कीं । कुल 69 वर्ष निर्मल संयम पालकर बीदासर में स्वर्गस्थ हुईं। 7.10.7 श्री चांदाजी 'गोगुंदा' (सं. 1968-96 ) 8/35 आप घोर तपस्वी मुनि 'सुखलालजी की माता थीं ताराबलीगढ़ के श्री पन्नालालजी सेठिया की सुपुत्री व नंदलालजी सिसोदिया की पत्नी थीं। लाडनूं में केशरजी, जड़ावांजी के साथ आपकी दीक्षा हुई, आपने स्वयं को सेवा व तप में नियोजित किया। अपने जीवन में 1601 उपवास, 224 बेले, 126 तेले, 30 चोले, 25 पचोले, 7 छह, 3 सात, 4 आठ, 9, 10, 14, 16, 21, 30 और 34 का तप दो-दो बार तथा 11, 12, 13, 15, 18, 19, 22, 24, 27, 29, 31, 32, 33 का तप एक बार किया। लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की दो परिपाटी पूर्ण की, तीसरी परिपाटी में मात्र 12 दिन शेष थे, तभी आपका बीदासर में स्वर्गवास हो गया। आपका संयम पर्याय 28 वर्ष का था, इतने स्वल्प समय में घोर तपस्या तथा साथ में चार विगय का त्याग एवं शीतकाल में एक पछेवड़ी ओढ़कर आपने उत्कृष्ट तपोमय जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 7.10.8 श्री ज्ञानांजी 'पीतास' (सं. 1968- 2018 ) 8 / 40 श्री ज्ञानांजी ने गर्भ के नौ महीने मिलाकर साढ़े 8 वर्ष की उम्र में माता नोजांजी के साथ फाल्गुन कृष्णा 6 को लाडनूं में दीक्षा ली, आपके पिता का नाम श्री दीपचंदजी धाड़ीवाल था । अल्पवय एवं प्रखरबुद्धि से आपने कई आगम, स्तोत्र, स्वाध्याय व 25 हजार पद्य प्रमाण आख्यानादि कंठस्थ किये, आपकी लिपि अत्यंत सुंदर थी, 400 से अधिक पत्रों के लगभग 11 पुस्तकें लिपिबद्ध की, संपूर्ण स्थानांगसूत्र की लिपि की । आपने उपवास से पांच तक की तपस्या कई बार की, तप के कुल दिन 2154 थे । सं. 1981 से आप अग्रणी पद पर नियुक्त हुई, और राजस्थान से हरियाणा तक विचरीं । आपकी निरभिमानता, स्वावलम्बीपन, सहनशीलता व सरलता के घटना प्रसंग जाासन-समुद्र में अंकित हैं। 50 वर्ष का संयम पालकर ये केलवा में स्वर्गस्थ हुईं। 7.10.9 श्री सोहनांजी 'राजनगर' (सं. 1969-99) 8/44 आपके पिता श्री पूनमचंदजी पोरवाल थे। मात्र नौ वर्ष की उम्र में आप अपनी माता विरधांजी के साथ कार्तिक कृष्णा 7 को चूरू में दीक्षित हुईं। आपकी कंठकला व व्याख्यान - शैली आकर्षक थी। लोगों पर इनका अच्छा प्रभाव था। 18 वर्षों तक अग्रणी पद पर विचरण किया, 30 वर्ष निर्मल संयम का आराधन कर रतनगढ़ चातुर्मास में स्वर्गवासिनी हुईं। Jain Education International 832 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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