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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ तक विचरकर ज्ञान सीखने की प्रबल प्रेरणा दी। आप छोटी-छोटी तपस्याएँ करती थीं, तप के कुल दिन 3035 थे। आपका स्वर्गवास हांसी (हरियाणा) में आषाढ़ कृ. 12 को हुआ। 7.10.2 श्री दाखांजी “दिवेर' (सं. 1967-2013) 8/16 दाखांजी, दिवेर (राज.) के श्री जीतमलजी डागा की कन्या थीं। 15 वर्ष की उम्र में माघ कृष्णा एकम के दिन रतनगढ़ में दीक्षित हुईं। आप हस्तकला व लिपिकला में विशारद थीं, हजारों पद्यों की प्रतिलिपि की। आपकी संघनिष्ठा, ऋजुता मृदुता, पापभीरुता की प्रशंसा आचार्य तुलसी ने भी की। सं. 1985 से 2013 तक राजस्थान के अनेक क्षेत्रों में धर्म की ज्योति जाग्रत की। 61 वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास 'रामसिंहजी का गुडा' में हुआ। 7.10.3 श्री मुक्खांजी 'सुजानगढ़' (सं. 1967-80) 8/19 आपका जन्म संवत् 1938 श्री जोधराजजी बोथरा के यहां हुआ, आपने पति वियोग के बाद श्री कालूगणी द्वारा वैशाख शुक्ला एकम को सुजानगढ़ में दीक्षा ग्रहण की। आप तेरापंथ-संघ में विशिष्ट तपस्विनी साध्वी हुई है, आपके तीन वर्ष के तप के आंकड़े इस प्रकार हैं-50 उपवास, दो बेले, तीन तेले 17, 18, 30, 35, 39, 47, शेष वर्षों के तप उपलब्ध नहीं हुए। आपने लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की चौथी परिपाटी संपूर्ण कर धर्म-संघ में कीर्तिमान स्थापित किया था, आछ के आधार पर नौमासी तप करके नया इतिहास बनाया। कुल 13 वर्ष में इन्होंने जो विचित्र तप किये, वे जैन श्रमण-संस्कृति के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित करने योग्य है। आप 43 वर्ष की उम्र में 'पडिहारा' में स्वर्गस्थ हुईं। 7.10.4 श्री चांदाजी 'मोमासर' (सं. 1968-2029) 8/26 आपका जन्म संवत् 1942 धीरदेसर के कुण्डलिया गोत्र में श्री ताराचंदजी के यहां हुआ। पतिवियोग के बाद आश्विन शुक्ला 14 को बीदासर में आचार्य कालूगणी से दीक्षित होकर आपने भी तप साधिकाओं की सूची में अपना नाम जोड़ दिया। 61 वर्ष के साधनाकाल में 3113 उपवास, 157 बेले, 13 तेले, 2 चोले, 1 पंचोला किया, अंत में 44 दिन का तिविहार संलेखना तप एवं 18 दिन का आजीवन अनशन ग्रहण कर लाडनूं में दिवंगत हुईं। 7.10.5 श्री छोटांजी 'तारानगर' (सं. 1968-2029) 8/27 आपके पिता श्री पन्नालालजी दूगड़ रतनगढ़ निवासी थे। आपने 18 वर्ष की उम्र में पति को छोड़कर अत्यंत वैराग्य भाव से राजलदेसर में पौष कृष्णा 14 को दीक्षा ली, इस दिन 1 भाई व 4 बहनों की भी दीक्षा हुई। छोटांजी को योग व ध्यान की विशेष रुचि थी, पद्मासन, हलासन, गर्भासन अनेक आसन उन्हें सिद्ध थे। ये उग्र तपस्विनी भी थीं, 2874 उपवास 166 बेले, 46 तेले, 31 चार, 28 पांच, 2 छह, 3 बार सात, आठ व नौ दो बार, 10, 11, 12, 14, 22, 30 दिन का तप एक बार किया था। छापर में अंतिम समय संलेखना तप किया जो 35 दिन चला। आपके आत्मबल व वर्धमान परिणामों को देखकर जिनशासन की महती गरिमा बढ़ी। अनशनकाल में भी आप 3 घंटे पद्मासन से बैठती थीं। 831 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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