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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.10.10 श्री अणचांजी 'श्री डूंगरगढ़' (सं. 1970-2031) 8/45
आपका जन्म संवत् 1951 को राजपुरा के श्री सूरजमलजी हीरावत के यहां हुआ। पति वियोग के पश्चात् श्रावण शुक्ला 8 को अणचांजी 19 वर्ष की वय में लाडनूं में दीक्षित हुईं, इनके साथ मुनि आशारामजी की भी दीक्षा हुई। दोनों दीर्घ तपस्वी हुए। इन्होंने कई स्तोक, सज्झाय आदि कंठस्थ किये। ये अत्यंत सेवाभाविनी, सामञ्जस्य पूर्ण व्यवहार की धारिणी, सहिष्णु प्रकृति की थीं, प्रत्येक कार्य स्वयं संयम से एवं जागरूक रहकर करती थीं, और सहवर्तिनी साध्वियों को भी यही शिक्षा देती थीं। इनके साथ कभी 20 कभी 25 कभी 30-35 साध्वियों का दल चलता था, ये सभी को संतुष्ट रखने में प्रवीण थीं। ये तप में भी विशिष्ट थीं, संयमी जीवन में इन्होंने 4684 उपवास, 741 बेले, 194 तेले, 55 चोले, 25 पचोले, 8 छह, 6 सात, 6 अठाई, 5 नौ, 10, 11, 12, 14, 16 का तप दो-दो बार, 13, 15 तथा 17 से 32 तक का तप एकबार किया। आछ के आधार से 183 दिन का उत्कृष्ट तप किया। आपके फुटकर तप एवं अन्य प्रत्याख्यानों की भी लंबी सूची है। लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की अत्यंत दुष्कर चतुर्थ परिपाटी भी आपने संपन्न की। इस प्रकार चतुर्थ आरे के दृढ़ संहनन वाले साधकों द्वारा संपन्न होने वाले उग्र तप को धैर्य व मनोबल से साध्वी अणचांजी ने पंचम आरे में पूर्ण किया, इसके लिये आचार्य श्री तुलसी ने आपकी भूरि-भूरि अनुमोदना व सराहना की। तथा 'दीर्घ तपस्विनी' संबोधन से सम्मानित किया। इन्हें साध्वी प्रमुखा जेठाजी से श्री कनकप्रभाजी तक पांच साध्वी प्रमुखाओं का भी अनुग्रह प्राप्त हुआ। अंत समय 7 दिन के अनशन के साथ मृगसिर शुक्ला 7 को 'आसींद' में यह महान तपोमूर्ति स्वर्गलोक की ओर प्रस्थित हुई। श्री हुलासांजी ने 'दीर्घ तपस्विनी साध्वी श्री अणचांजी' पुस्तक उनके तपोमय जीवन संबंधित लिखी है।
7.10.11 श्री जड़ावांजी 'सरदारशहर' (सं. 1970-90) 8/46
आपका जन्म संवत् 1938 को श्री हरखचंदजी दफतरी के यहां हुआ। आपने पतिवियोग के पश्चात् लाडनूं में आश्विन शुक्ला 13 को दीक्षा ग्रहण की। बीस वर्ष यथासाध्य तप-जप की आराधना कर अंत में तप के 41वें दिन उत्कृष्ट भावों के साथ तिविहारी संथारा किया, 31 दिन का अनशन, इस प्रकार कुल 71 दिन पूर्ण कर लाडनूं में आपने स्वर्गगमन किया।
7.10.12 श्री प्यारांजी “पुर' (सं. 1971-2011) 8/53
आपका जन्म बागोर निवासी श्री पृथ्वीराज चपलोत के यहां संवत् 1946 में हुआ। पति वियोग के पश्चात् आपने दसवर्षीय पुत्र कानमलजी के साथ पुर में दीक्षा ग्रहण की। शरीर से कृश होने पर भी आपने तपस्या में जो आत्मबल दिखाया, वह रोमांचित करने वाला है। आपने उपवास से 19 दिन लड़ीबद्ध तप किया, दो बार 21 व एकबार मासखमण किया, इसके अतिरिक्त दो पचरंगी, एक धर्मचक्र, लघुसिंहनिष्ठक्रीड़ित तप की दूसरी परिपाटी पूर्ण की। इस प्रकार 40 वर्ष की संयम-पर्याय में 18 वर्ष तपस्या में (6497 दिन) व्यतीत कर आपने जो तप का आदर्श उपस्थित किया, वह अवर्णनीय है। चूरु में आपने पंडितमरण प्राप्त किया।
7.10.13 श्री भूरांजी 'मंदारिया' (सं. 1971-2018) 8/55
आपका जन्म सवत् 1943 को देवरिया ग्राम में श्री बेणीरामजी पितलिया के यहां तथा विवाह श्री हीरालालजी
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