SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 891
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ समग्र तप की तालिका इस प्रकार - उपवास 3400, बेले 428, तेले 125, चोले 57, पचोले 54, छह 2, सात 2, आठ 8, नौ से इक्कीस तक उपवास एक बार 25 एवं 30 उपवास एक बार इस प्रकार कुल तप के दिन 5484 हैं। बड़ी तपस्या के अतिरिक्त उन्होंने आजीवन एकांतर तप भी चालू रखे । लाडनूं में आपका देहावसान हुआ। 7.9.18 श्री हुलासांजी 'सरदारशहर' (सं. 1965-2024) 7/108 आपका जन्म संवत् 1948 को श्री भीखणचंदजी पींचा के यहां हुआ। आप श्री उदयचंदजी गधैया की धर्मपत्नी तथा धर्मनिष्ठ श्रावक श्रीचंदजी की पुत्रवधू थीं। 16 मास में ही पति की अचानक मृत्यु हो गई, तब हुलासजी ने सरदारशहर में श्री डालगणी से मृगसिर शुक्ला 5 को दीक्षा अंगीकार की। आपने भगवती आदि 16 सूत्रों को लिपिबद्ध किया। संवत् 1981 अग्रणी बनकर जिन-जिन क्षेत्रों में गईं, उन उन क्षेत्रों में धार्मिक प्रतिबोध देकर सुसंस्कारी बनाने का प्रयास किया। आप पापभीरु, धैर्यवान, मृदुभाषिणी थीं। आपकी प्रेरणा से मोमासर में पांच बहनें दीक्षा के लिये तैयार हुईं। आपके तपोमय जीवन के कुल दिन 1836 थे। साधु जीवन को निर्दोष पालती हुई 'मोमासर' में समाधि मरण को प्राप्त हुईं। 7.9.19 श्री प्रतापांजी 'सरदारशहर' (सं. 1965-2033) 7/112 आपका जन्म सं. 1947 आषाढ़ शुक्ला 12 को श्री शोभाचंदजी दुगड़ के यहां हुआ, एक प्रतिष्ठित श्रद्धानिष्ठ श्रावक थे। विवाह के तीन वर्ष पश्चात् पति के दुखद वियोग ने आपके जीवन को धर्म से जोड़ दिया। आचार्य डालगणी के द्वारा लाडनूं में, मृगसिर शुक्ला 5 को आपकी दीक्षा हुई। आपकी लिपि सुंदर थी, अतः अनुमानतः चार हजार पत्र संख्या प्रतिलिपिकृत हैं। स्वाध्याय की रुचि होने से एक मास आप करीब 1 लाख गाथाओं का पुनरावर्तन कर लेती थीं। छोटे-मोटे कई नियम व प्रत्याख्यान भी किये तथा यथाशक्य तप की आराधना भी की। लगभग 68 वर्ष की संयम यात्रा सम्पन्न कर आपने भीनासर में स्वर्ग प्रस्थान किया। 7.8.20 श्री कंकूजी 'कुंवाथल' (सं. 1965-2025) 7/116 आपके पिता का नाम श्री चौथमलजी पीतलिया तथा पति का सूरतरामजी दक था । पतिवियोग के बाद माघ शु. 7 को लाडनूं में आपने दीक्षा ग्रहण की, उस समय श्री नाथांजी, कुन्नणाजी, गौरांजी, मैनांजी भी दीक्षित हुईं। संयम की आराधना के साथ-साथ आपने तप की जो आराधना की उसे पढ़कर रोमाञ्च हो उठता है - उपवास 5434, बेले 459, तेले 43, चोले 23, , पचोले 12, छह 2, सात, आठ एक बार कुल तप के दिन 6660 थे। तीस वर्ष तक आपने एकांतर तप किया। चौविहार बेले की तपस्या के साथ लाडनूं में समाधिपूर्वक देह त्याग किया। 7.9.21 श्री मैनांजी 'झाबुआ' (सं. 1965-2013) 7/120 श्री मैनांजी मालवा के झाबुआ की निवासिनी थी पिता का नाम श्री धनराजजी चोपड़ा एवं पति का नथमलजी जसवड़ा था। पति वियोग के पश्चात् ये भी लाडनूं में माघ शुक्ला 7 को दीक्षित हुईं। मैनाजी घोर तपस्विनी साध्वी थीं, इन्होंने उपवास से पन्द्रह तक की तपस्या क्रमबद्ध की। उसमें 2505 उपवास, 255 बेले, 43 तेले, 24 चोले, 25 पचोले, 3 छह, शेष तपस्या एक बार की। अंतिम समय में आपने संलेखना व्रत ग्रहण Jain Education International 829 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy